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卐 अर्थ - पशु अज्ञानी एकांतवादी है तो अपना क्षेत्रवि तिष्ठनेके अर्थी न्यारे न्यारे परक्षेत्रवि तिष्ठते ज्ञेय पदार्थ तिनिके छोडने तुच्छ होयकरि अपने चैतन्यके ज्ञेयरूप आकारनिक्कू पर 5 ज्ञेय अर्थकी साथि वमता संता जैसें अर्थनि छोडे तैसें चैतन्यके आकारनिकू भी छोड़ें। तब २ आषा तुच्छ रह्या । ऐसा आपका नाश करे है। बहुरि स्याद्वादी अपने क्षेत्रविषे वसता संता परक्षेत्र विषै अपनी नास्तिताकूं जानता संता यद्यपि परक्षेत्र ज्ञेय पदार्थनिकू छोडे है तौऊ अपने 卐 5 चैतन्य के ज्ञयरूप आकार भये तिनिकू परतें खेचनेवाला होता तुच्छताकूं नाहीं अनुभवे है नष्ट नाहीं होय है । 卐
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भावार्थ - एकांती तो परक्षेत्रविषे तिष्ठते ज्ञेयपदार्थनिक आकार चैतन्यके आकार भये 15 तिनिकूं जैसें अर्थनिकू छोडे है तेंसें चेतन्यके आकारनिकूं भी छोड़े है ऐसें जाने है। चैतन्यके 5 आकारनिकूं अपना करूंगा तो अपना क्षेत्र छुटि जायगा। तातें आप चैतन्यके आकाररहित फ होय तुच्छ होय है, नष्ट होय है । बहुरि स्याद्वादी ज्ञयपदार्थनिकू छोडे है, तौऊ अपने चैतन्यके 5 आकारनिकू छोडे नाहीं है । अपने क्षेत्र विषै वसता परक्षेत्रत्रिष अपनी नास्तिताकूं जानता तुच्छ फ नाहीं होय है, नष्ट नाहीं होय है । यह परक्षेत्र अपेक्षा नास्तिताका भंग है । पुनः卐 पूर्वालम्बतवोभ्यनाशसमये ज्ञानस्य नाशं विदन् सीदत्येव न किञ्चनापि कलयन्नत्पन्ततुच्छः पशुः । अस्तित्वं निजकालतोऽस्य कलयन स्याद्वादवेदी पुनः पूर्णस्तिष्ठति बाह्यवस्तुषु मुहुर्भुवा विनश्यत्स्वपि ॥ १० ॥ अर्थ- पशु अज्ञानी एकांतवादी है सो पूर्वकालमें आलंबे जे ज्ञेयपदार्थ तिनिका नाश होनेके
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समय विज्ञानका भी नाशकू जानता संता किछू भी नाहीं जानता संता तुच्छ भया नाशकूं प्राप्त होय है । बहुरि स्थाद्वादका वेदी है सो इस आत्माका अपने कालतें अस्तित्व जनता संता बाह्यवस्तु बारंबार होयकरि नष्ट होते संते भी आप पूर्ण ही तिष्ठे है।
भावार्थ- पहिले शेय पदार्थ जाने थे उत्तरकालमें विनसि गये तिनिकू देखि एकांती अपना
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ज्ञानका भी नाश मानि अज्ञानी हुवा आत्माका नाश करे है। बहुरि स्याद्वादी ज्ञेयपदार्थनिकू 卐
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