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________________ "मूलं धर्माधर्मरूपं परमसमयमुद्दम्य स्वयमेव प्रवृज्यारूपमापाच दर्शनज्ञानचरित्रस्थितित्वरूपं समयमवाप्य मोक्षमार्गमात्मयभन्या परिणतं कृत्वा समयाप्तसंपूर्णविज्ञानधनमा हानोपादानशून्यं साक्षात्समयसारभूतं शुद्धज्ञानमकमेव स्थितं द्रष्टव्यं । 'म ___ अर्थशास्त्र है सो ज्ञान नाही है। जातें शास्त्र किछू जाने नाही है, जड़ है। तातें .. फ्रज्ञान अन्य हे शास्त्र अन्य है, ऐसें जिन भगवान् हैं ते जाने हैं कहे हैं । शब्द है सो ज्ञान । ..नाही है जाते शब्द किछु जाने नाही है तातें ज्ञान अन्य है शब्द अन्य है। यह जिनदेव - कहे हैं । रूप है सो ज्ञान नाही है। जात रूप किछू जाने नाही है। तातें ज्ञान अन्य है रूप " - अन्य है । यह जिनदेव कहे हैं। वर्ण है सो ज्ञान नाहीं है। जाते वर्ण किछू जाने नाही है। म तातें ज्ञान अन्य है वर्ण अन्य है। यह जिनदेव कहे हैं। गंध है सो ज्ञान नाहीं है। जाते गंध जकिछू जाने नाही है। तातें ज्ञान अन्य है गंध अन्य है । यह जिनदेव कहे हैं। बहुरि रस हे सो ॥ "ज्ञान नाहीं है। जातें रस किछु जाने नाही है, तातें, ज्ञान अन्य है रस अन्य है । यह जिनदेव ' कहे हैं । स्पर्श है सो ज्ञान नाहीं है। जाते स्पर्श किछु जाने नाही है, तातै ज्ञान अन्य है स्पर्श . ___ अन्य है। यह जिनदेव कहे हैं। कर्म है सो ज्ञान नाही है। जातें कर्म किछू जाने नाहीं है, . जतातें ज्ञान अन्य है कर्म अन्य है। यह जिनदेव कहे हैं। धर्म है सो ज्ञान नाहीं हे। जातें धर्म । किछू जाने नाही है, तातें ज्ञान अन्य है धर्म अन्य है । यह जिनदेव कहे हैं । अधर्म है सो ज्ञान नाहीं है । जाते अधर्म किछू जाने नाहीं है, तातें ज्ञान अन्य है अधर्म अन्य है। यह जिनदेव कहे हैं । काल है सो ज्ञान नाहीं है । जाते काल किछू जाने नाही है, तातें ज्ञान अन्य है काल卐 "अन्य है। यह जिनदेव कहे हैं । आकाश भी ज्ञान नाही है जाते आकाश किछू जाने नाहीं है, .. जतातें ज्ञान अन्य है आकाश अन्य है। यह जिनदेव कहे हैं। तैसे ही अध्यवसान है सो ज्ञान .नाही है । जाते अध्यवसान अचेतन है, तातें, ज्ञान अन्य है अध्यवसान अन्य है। यह जिनदेव .. 卐 कहे हैं । बहुरि जीव है सो ज्ञायक है, सो ही ज्ञान है । जाते यह निरतर जाने है । ज्ञान है सो । 1- ज्ञायकतें अभिन्न है न्यारा नाही है, ऐसा जानना । बहुरि ज्ञान है सोहो सम्यग्दृष्टि है, ज्ञान ही ।
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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