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जतातें सर्वथा एकांत मानना तो दोऊ ही भूम है-वस्तुस्वरूप नाहीं। हम कथंचित नित्यानित्या-4 प - मक वस्तुस्वरूप कहे हैं, सो सत्यार्थ है । आगे ऐसे ही क्षणिक माननेवालेकू युक्तिकरि निषेधे है। ..
___अनुष्टपछन्दः + यूयंशभेदतोऽत्यन्तं वृत्तिमन्नासकल्पनात् । अन्य; शानि भुक्तंऽन्यः इत्येकान्तवलास्तु मा ॥१५॥
अर्थ-वृत्त्यंश कहिये क्षणक्षणप्रति अवस्थामंद हैं, तिनिक वृत्त्यंश कहिये । तिनिके अत्यंत म कहिये सर्वथा भेद न्यारे न्यारे वस्तु माननेत वृत्तिमत् कहिये जा, अवस्था पाइये ऐसा आश्रय卐 -रूप वृत्तिमान् वस्तु, ताका नाशकी कल्पनाते ऐसे माने हैं, जो करे और है अर भौगवे और ..
है। सो आचार्य कहे हैं, जो ऐसा एकांत मति प्रकाशो। जहां अवस्थावान् पदार्थका नाश भया, 卐 तहां अवस्था कोनके आश्रय होय ? ऐसा दोऊका नाश आवे है, तब शून्यका प्रसंग होय है। - ... अब अनेकांराबूं प्रगट पारि इस क्षाणियायाळू शाट करि निषेधे हैं । गाथा
केहि चिदु पज्जयेहिं विणस्सदे णेव केहिचिदु जीवो। जमा तहमा कुब्वदि सो वा अण्णो व णेयंतो॥३७॥ केहिचिदु पज्जयहिं विणस्सदे णेव केहिचिदु जीवो। जमा तह्मा वेददि सोवा अण्णो व णेयंतो ॥३८॥ जो चेव कुणदि सो चेव वेदको जस्स एस सिद्धंतो। सो जीवो गादव्यो मिच्छादिट्ठी अणारिहिदो ॥३९॥ अण्णो करेदि अण्णो परिभुंजदि जस्स एस सीद्धंतो। सो जीवो यादवो मिच्छादिट्ठी अणारिहदो ॥४०॥
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