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________________ $ $ $ $ $$ ज $ विवक्षाके वशते सिद्ध होय हैं। यह स्योद्वादमत जैनीनिका है। अर वस्तुस्वभाव ऐसा ही है। "कल्पना नाहीं है। ऐसे माने पुरुषकै संसार मोक्ष आदिकी सिद्धि है। सर्वथा एकांत माननेविर्षे फसर्व निश्चय व्यवहारका लोप होय है ऐसें जानना । आगे धौलमती क्षणिकवादी हैं, ते ऐसे माने के हैं, जौ, की तो अन्य है अर भोक्ता अन्य है। तिनिके सर्वथा एकांत मानने में दूषण दिखावे हैं। 卐अर स्याद्वादकरि जैसे वस्तुस्वरूप कीभोक्तापणा है तैसें दिखावे हैं। तहां प्रथम ही ताकी सूचनिकाका काव्य है। मालिनीछन्दः क्षणिकमिदमिहकः कल्पयित्वात्मतत्वं निजमनसि विधचे कनु भोक्त्रोविभेदं । अपहरति विमोहं तस्य नित्याभृतौद्यः स्वयमयमभिषिचंश्चिचमत्कार एव ॥१४॥ प अर्थ-एक कहिये बौद्धमती क्षणिकवादी है सो आत्मतत्त्वकू क्षणिक कल्पिकरि अर अपना 1 "मनविर्षे कती अर भोक्ताविर्षे भेद माने है। करे और है, भोगवे और है ऐसे माने है । ताका भविमोह कहिये अज्ञानकुं यह चैतन्यचमत्कार है सो ही आप दूरी करे है। कहा करता संता? ॥ _____ नित्यरूप अमृतका ओघनिकरि सिंचता संता। 卐 भावार्थ-क्षणिकवादी कतीभोक्तावि भेद माने हैं, पहिले क्षण था सो दर्जे क्षण नाहीं -ऐसें माने हैं । सो आचार्य कहे हैं। जो हम साकू कहा समझायें ? यह चैतन्य ही ताका - अज्ञान दूरी करेगा। जो अनुभक्गोचर नित्यरूप है । पहिले क्षण आप है, सो ही दूजे क्षणमें कहे हैं। मैं पहले था, सो ही हों, ऐसा स्मरणपूर्वक प्रत्यभिज्ञान, ताकी नित्यता दिखावे हैं। इहां "बौद्धमती कहे, जो पहिले क्षण था, सोही मैं दुजे क्षण हौं, यह मानना तो अनादि अविद्यातें भ्रम - 卐है, यह मिटे तब तत्त्व सिद्ध होय, समस्त क्लेश मिटे। ताकू कहिये, जो, हे बौद्ध, ते प्रत्यभिज्ञा- + ___नकू भ्रम बताया, तो जो अनुभवगोचर है सो भ्रम ठहरथा । तो तेरा मानना क्षणिक है । सो । 卐भी अनुभवगोचर है । सो यह भी भूम ही ठहया । जाते अनुभव अपेक्षा दोऊ ही समान हैं $$ $$ $
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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