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________________ 卐 ऐसें जानिकरि अर जो परद्रव्यविषै लौकिकजनकै अर मुनिनिकै जो कर्तापणाका व्यापार होय तौ ऐसें जाने, जो ए सम्यग्दर्शनकरि रहित हैं । 卐 5 प्रा फ टीका - जे व्यवहारहीविषे विमूढ है ते ही अज्ञानी हैं, ते ही यह परद्रव्य मेरा है ऐसें देखे है कहे हैं। बहुरि ज्ञानी हैं ते निश्चयनयकार प्रतिबुद्ध भये हैं, ते परद्रव्यकूं कणिकामात्रकूं भी 'यह मेरा है ऐसें नाही' देखे हैं, तातें जैसें या लोकमें कोई व्यवहारविषै विमूढ परके ग्राम 卐 5 वसनेवाला कहै " यह मेरा ग्राम है" ऐसें देखतासंता मिथ्यादृष्टि कहिये । तैसें जो ज्ञानी भी कोई प्रकारकरि व्यवहारविषै विमूढ होयकरि 'यह परद्रव्य मेरा है' ऐसें देखे, तो तितकाल सो कभी परद्रव्यकूं आप करता संता मिध्याहति ही होय बातें जो तत्रकूं जानता पुरुष है, सो स - ही परद्रव्य मेरा नाही है ऐसें जानिकरि अर लौकिकजन अर भ्रमणजन इनि दोऊनिके भी जो 5R यह परद्रव्यविर्षे कर्तापणाका निश्चय है, तौ सो तिनिके सम्यग्दर्शनका रहितपणाहीतें होय है, ऐसें निश्चय जाने है। t भावार्थ - ज्ञानी भी होय अर फेरि व्यवहारकरि मोही होय, तौ, लौकिकजन होऊ तथा 5 मुनिजन होऊ, दोऊके परद्रव्यका कर्तापणा आवे, तब मिध्यादृष्टि होय है, ऐसें ज्ञानी जाने है। इस at an hoशरूपकाव्य कहे हैं । 卐卐 वसन्ततिलका छन्दः एकस्य वस्तुन हान्यतरेण सार्द्ध सम्बन्ध एव सकलोऽपि यतो निषिद्धः । तत्क] कर्मघटनाऽस्ति न वस्तुभेदे पश्यन्त्वक' मुनयश्च जनाश्च तम्यम् ||६|| 卐 अर्थ — जाकारण एकवस्तुकै अन्यवस्तुकरि सहित इस लोकमैं संबंध है, सो समस्त ही निषेध्या है; तातें जहां वस्तुभेद है तहां कर्ताकमकी प्रवृत्ति ही नाहीं है । तातें लौकिकजन भी फफफफफफफफफफफफफ 卐 卐 卐 भर मुनिजन भी वस्तुके तत्त्व कहिये यथार्थस्वरूप ऐसा ही देखो, जो कोई काहूका कर्ता नाहीं, ५४८ परद्रव्य परका अकर्त्ता ही श्रद्धामैं ल्यावो । आगे कहे हैं जो पुरुष ऐसा वस्तुस्वभावका नियम ६१ फ्र 卐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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