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________________ ॥ 乐 乐 $ $$ $ भावार्य-यह जात्मा जेतें अपना अर परका निजलक्षण नाहीं जाने, तेतें भेदज्ञानका " मय अभावतें कर्मप्रकृतिका उदयकू अपना जाणि परिणमे है । तैसें मिथ्यादृष्टि अज्ञानी असंयमी होय, 卐 - कर्ता होय, कर्मका बंध करे है । अर भेदज्ञान होय तब ताका कर्ता न बने है, तब कर्मका बंध .. न करे है, ज्ञाता द्रष्टा हुवा परिणमे हैं। ऐसे ही भोक्तापणा आत्माका स्वभाव नाहीं है ऐसें कहे हैं। ताकी सूचनियागः लोग... भोक्तं न स्वभावोऽम्य स्मृतः कर्तृत्ववचितः । अज्ञानादेव भोक्ताऽयं तदभावादवेदकः ॥४॥ अर्थ-इस आत्माका कर्तास्वभाव जैसें नाहीं है, तैसें ही भोक्तापणाभी स्वभाव नाही है, यह 5 15 अज्ञानहीतें भोक्ता होय है । बहुरि जब अज्ञानका अभाव होय है तब अवेदक है-भोक्ता नाही है। आगे इस अर्थकू गाथामें कहे हैं। अण्णाणी कम्मफलं पयडिसहावठिदो दु वेदेदि। णाणी पुण कम्मफलं जाणदि उदिदं ण वेदेदि ॥९॥ अज्ञानी कर्मफलं प्रकृतिस्वभावस्थितस्तु वेदयते । ज्ञानी पुनः कर्मफलं जानाति-उदितं न वेदयते ॥९॥ __ आत्मख्याति:- अज्ञानी हि शुद्धात्मशानाभावात् स्वपरयोरेकत्वज्ञानेन, स्वपरपोरेकत्वदर्शनेन, स्वपश्योरेकत्वपरिपत्या च प्रकृतिस्वभावे स्थितत्वात् प्रकृतिस्वभावमप्यतया--अनुभवन् कर्मफलं वेदयते । ज्ञानी तु शुद्धात्मज्ञानसभा भावात्स्वपरयोविभागज्ञानेन, स्वपरयोविभागदर्शनेन स्वपस्योरेकत्वापरिणत्या च प्रकृति स्वभावादपसृतस्वात-युद्धात्म- .. स्वभावमेकमेवाईतयानुभवन् कर्मफलमुदितं झंयमानत्वात्-जानात्येव न पुनस्तस्याहंतयाऽनुभवितुमशक्यत्वाद् वेदयते । म _ अर्थ-अज्ञानी है सा तौ कर्मका फल प्रकृतिके स्वभाववि तिष्टया हवा वेदे है-भोगवे है । बहुरि ज्ञानी है सो उदय आया कर्मका फलकूजाने है अर वेदे नाहीं है-भोगवे नाहीं है। " टोका-अज्ञानी है सो निश्चयकरि शुद्ध आत्माका ज्ञानका अभावतें अपना अर परका एकज $$ $ 乐乐 乐乐 $ $$ $$ 田 $
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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