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________________ व 1 ऐसा है तोऊ याकै इस लोकवि प्रगट कर्मप्रकृतिनिकरि बंध होय है। सो यह निश्चयकरि च) अज्ञानका कोई ऐसा ही महिना है, सो बड़ा गहन है-ताका थाह न पाइये। भावार्थ-शुद्धनयकरि जीव परद्रव्यका कर्ता नाहीं अर सर्व ज्ञेयनिवि जाका ज्ञान व्याप5 नेवाला है, तौऊ याकै कर्मका बंध होय है सो यह कोई अज्ञानका बड़ा महिमा है। आगै इस 1. अज्ञानका महिमाकू प्रगट करे हैं । गाथा चेदा दु पयडिवढं उप्पजदि विणस्सदि । पयडीवि चेदयटै लप्पजदि विणम्सदि ॥५॥ एवं बंधो दुराहंपिं अण्णोण्णपञ्चयाण हवे । अप्पणो पयडी एय संसारो तेण जायदे ॥६॥ चेतयिता तु प्रकृत्यर्थमुत्पद्यते विनश्यति । प्रकृतिरपि चेतकार्थमुत्पद्यते विनश्यति ॥५॥ एवं बंधो द्वयोरन्योन्यप्रत्ययादभवेत् । आत्मनः प्रकृतेश्च संसारस्तेन जायते ॥६॥ आत्मस्याति:-अयं हि आ संसारत एवं प्रतिनियतस्वलक्षणानिनेिन परमात्मनोरेकत्याध्यासस्य करणात्कर्ता सन् चेतयिता प्रतिनिमित्तमुत्पादविनाशावासादयति । प्रकृतिरपि चेतयितृनिमित्तमुत्पत्तिविनाशाबासादयति । एव- मनयोरात्मप्रकृत्योः कर्तृकर्मभावाभावेप्यन्योन्यनिमित्तनैमितिकभावेन द्वयोरपि बंधो दृष्टः, ततः संसारः, तत एव च ॥ "योः कई कर्मव्यवहारः-- 5 अर्थ- चेतयिता कहिये चेतनेवाला आत्मा हे सो तौ प्रकृति कहिये ज्ञानावरणादि कर्मकी , 1- प्रकृति ताके निमित्ततें उपजे है तथा विनसे है। तथा प्रकृति भी तिस चेतनेवाले आत्माके 55 5 5 5 5 5 5 "녀 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 5
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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