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________________ फफफफफफफफफफफफ 卐 महिमा है । सो ऐसा ज्ञानपुअ आत्मा प्रगट होय है । अब सर्व विशुद्धज्ञान प्रगट करे है । 卐 तहां प्रथम ही कर्ता-भोक्ताभावतें न्यारा दिखावे हैं, ताकी सूचनिकाका श्लोक है । 卐 मय 卐 अनुष्टुप्छन्दः कथं न स्वास्थ चियो वेदयितृत्ववत् । अज्ञानादेव कर्ताऽयं तदभावादकारकः ||२॥ अर्थ - इस चित्स्वरूप आत्माका कर्तापणा स्वभाव नाहीं है । जैसे वेदयितृत्व कहिये भोक्ता पणा स्वभाव नाहीं है, तैसें सो यह आत्मा कर्ता मानिये है, सो अज्ञानतै मानिये है | अर जब 卐 अज्ञानका अभाव होय है, तब अकारक कहिये कर्त्ता नाहीं है । आगे आत्माका अकर्तापणा 5 दृष्टांतपूर्वक सिद्ध करे हैं। गाथा दवियं जं उपज्जदि गुणेहि तंतेहि जाणसु अणराणं । जह कडयादीहिंदु पजएहिं कायं अणण्णमिह ॥ १ ॥ जीवरसाजीवस्य जे परिणामा दु देखिदा सुते । तं जीवमजीवं वा तेहिमणण्णं वियाग्राहि ॥२॥ 卐 卐 卐 卐 卐 फ्रफ़ फ्रफ़ फफफफफफफफफ ण कुदोवि विप्पण्गो जह्मा कज्जं ण लेण सो आदा । उप्पादेदि ण किंचिवि कारणमवि तेण गा सो होदि ॥३॥ कम्मं पहुच कत्ता कत्तारं तह पहुच कम्माणि । उप्पंजंतिय यिमा सिद्धी दु ण दिस्सदे अगणा ||४|| द्रव्यं यदुत्पद्यते गुणैस्तत्तैर्जानीह्यनन्यत् । यथा कटकादिभिस्तु पर्यायैः कनकमनन्यदिह ॥१॥ 卐 4 श्र
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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