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________________ $ $ $$ 折 $ $ $ 卐 अगऱ्या, अशुद्धि ऐसे आठ प्रकार अमृतकुंभ हैं । जातें इहां कर्त्तापणाका निषेध है, किछू ही न करना । तातें बंधते रहित है।। टीका-जो प्रथम अज्ञानी जन ते साधारण अप्रतिक्रमणादिक है, सो तो शुद्धात्माकी, सिद्धीका अभाव स्वभावरूप है, तातें स्वयमेव अपराध दोषरूप ही है, तातें ताका विचार करि तौ । कहा ? वह तो पहले ही त्यागने योग्य है । बहुरि जो द्रव्य प्रतिक्रमणादिक है, सो सर्व अपराध-5 + रूपपणातें विषके अनुक्रमकरि मेटनेवि समर्थपणाकरि अमृतकुंभ भी व्यवहार आचारसूत्रमें ... कया है । तोऊ प्रतिक्रमण अप्रतिक्रमण आदि दोऊते विलक्षण ऐसी अप्रतिक्रमण आदि स्वरूप 卐 तीसरी भूमिकू नाहीं देखनेवाले पुरुषके दोका काटना जो आगला. कार्य, ताके करनेविर्षे अस मर्थपणाकरि विपक्ष जो बंध ताका कार्य करनेवालापणातें प्रतिक्रमणादिक है, सो विषकुभ ही। 7 है। बहुरि अप्रतिक्रमणादिरूप तीसरी भूमि है, सो आप स्वयं शुद्धात्माकी सिद्धिरूप है, तिस पणाकरि सर्व अपराधरूप विषके दोष, तिनिकी सर्वकी मेटनेवाली है। तातें साक्षात् आप स्वयं अमृतकुभ है, सो ऐसे ही तीया भूमि व्यवहार करिक द्रव्यप्रतिक्रमणादिकके भी अमृतकुभ-卐 पणाकू साधे है। तिस तीसरी भूमीही करि चेतयिता आत्मा निरपराध होय है । इस तीसरी __ भूमीकाका अभाव होते द्रव्यप्रतिक्रमणादिक है, सो भी अपराध ही है । यातें यह ठहरी-जोक। अप्रतिक्रमणादिरूप तीसरी भूमीहीकरि निरपराधपणा है, ताकी प्राप्तिके अर्थि ही यह द्रव्यज प्रतिक्रमणादिक है, ताहें ऐसें मति मानो, जो निश्चयनयका शास्त्र है, सो द्रव्य प्रतिक्रमणादिककू. छुडावै है, तो कहा कहे है ? द्रव्यप्रतिक्रमणादिकहींकरि आत्मा बंधतें नाहीं छूट है। इस सिवाय । 卐 अन्य भी प्रतिक्रमण अप्रतिक्रमण आदिकै अगोचर अप्रतिक्रमणादिरूप शुद्धात्माकी सिद्धि है; लक्षण जाका अर करना जाका अतिकठिन ऐसा किछू करावे है, सो इहां ही आगे कहा, .. ताकी गाथा--कम्म जं पुक्कयं । सुहासुहमणेयवित्थरविसेसं । तत्तो णियत्तए अप्पयं तु जो सो का $$ $ ॐॐॐ
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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