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________________ 免 % % % % % 5 折,乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 q बंधकू प्रज्ञाकार तो भिन्न किये अर आत्माकू ग्रहण काहेकरि कीजिये ? ताका प्रश्नोत्तरकी ।। गाथा कहे हैं। कह सो घिप्पदि अप्पा पण्णाए सो दु घिप्पदे अप्पा। जह परणाए विभत्तो तह पण्णाएव पित्तव्वो ॥९॥ कथं स गृह्यते आत्मा प्रज्ञया स तु गृह्यते आत्मा । यथा प्रज्ञया विभक्तस्तथा प्रज्ञयैव गृहीतव्यः ॥९॥ 卐 आत्मख्यातिः-ननु केन शुद्धोयमात्मा गृहीतव्यः ? प्रज्ञयेज शुद्धोयमात्मा गृहीतव्यः, शुद्धस्यात्मनः स्वयमा स्मानं गृहवो विभजत इव प्रककरणत्वात् अतो यथा प्रज्ञया विभक्तस्तथा प्रायैव गृहीतव्यः। कथमात्मा प्रज्ञया गृहीतव्यः इति चेत अर्थ-शिष्य पूछे है, सो यह शुद्ध आत्मा काहेकरि ग्रहण कीजिये? आचार्य उत्तर कहे " हैं-प्रज्ञाहीकरि यह शुद्ध आत्मा ग्रहण कीजिये । जैसे पहले प्रज्ञाकरि भिन्न किया, तैसें प्रज्ञा हीकरि ग्रहण करना। टीका-शिष्यका प्रश्न, जो यह शुद्ध आत्मा काहेकरि ग्रहण करना ? गुरु उत्तर कहे हैं-卐 है जो यह शुद्ध आत्मा प्रज्ञाहीकरि ग्रहण करना । आप स्वयं शुद्ध आत्माकू ग्रहण करता जो शुद्ध आत्मा, ताकै पहलै भिन्न करताके प्रज्ञा ही एक करण था, तैसें हो ग्रहण करताके भी सो ही। 卐 प्रज्ञा एक करण है, भिन्न करण नाहीं । यातें जैसे पहले प्रज्ञाकरि भिन्न किया था, सैसे .. प्रज्ञाहीकरि ग्रहण करना। भावार्थ-भिन्न करने में अर ग्रहण करनेमें न्यारा करण नाहीं है। तातै प्रज्ञाहीकरि तौ॥ भिन्न किया अर प्रज्ञाहीकरि ग्रहण करना । आगै फेरि पूछे है “जो यह आत्मा प्रज्ञाकरि कौन... प्रकार ग्रहण करना?" ताका उत्तर कहे हैं । माथा % % 牙 f
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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