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________________ + + + + + 3 उपदेशकरि चेतयिता-आत्मा अकारक कह्या है, जेते आरमा द्रव्यविर्षे अर भावविर्षे अप्रतिक्रमण के . अर अप्रत्यागपाल करे है, से सो आग इतः होर है यह जानना। टीका-आत्मा है सो आपहीकरि रागादिभावनिका अकारक ही है। जातें आप ही कारक 卐 होय तौ अप्रतिक्रमण अर अप्रत्याख्यान इनिका द्रव्यभावकरि दोय प्रकारका उपदेशको अप्राप्ति के ___ आवे है-जो निश्चयकरि अप्रतिक्रमण अर अप्रयाख्यानका दोय प्रकार भेदका उपदेश है, सो यह + उपदेश द्रव्यके अर भावके निमित्तनैमित्तिकभावकू विस्तारता संता, आत्माके अंकापणाकू ॥ 1- जनावै है, तातें यह ठहरथा, जो परद्रव्य तौ निमित्त है अर नैमित्तिक आत्माकै रागादिकभाव हैं, जो ऐसे न मानिये तौ द्रव्य अप्रतिक्रमण अर द्रव्य अप्रत्याख्यान इनिके कर्तापणाका निमित्तपणाका उपदेश है सो अनर्थक ही होय, अर इस उपदेशके अनर्थकपणा होते संते एक आत्माहीके रागादिभावका निमित्तपणाकी प्राप्ति होते सदा नित्यकर्तापणाका प्रसंग आवै, तातें मोक्षका अभाव ठहरे, तातें आत्माकै रागादिभावनिका निमित्त परद्रव्य ही होऊ, तैसे होते आत्मा रागादिभावनिका अकारक ही है, यह सिद्ध भया तौऊ जैत रागादिकका निमित्त भूत परद्रव्यका प्रतिक्रमण तथा प्रत्याख्यान नाहीं करे, तेते नैमित्तिकभूत रागादिकभावनिका प्रतिक्रमण प्रत्या ख्यान न होय, बहुरि जेते इनि भावनिका प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान न होय, तेते रागादि भावनिका कर्ता ही है, बहुरि जिसकाल रागादिभावनिका निमित्तभूत द्रव्यनिका प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान + करे है, तिसही काल नैमित्तिकभूत रागादिभावनिका प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान होय है, बहुरि जिस- काल इनि भावनिका प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान भया, तिस काल साक्षात् अकर्ता ही है। 卐 भावार्थ-अतिक्रमण प्रत्याख्यानका द्रव्यभाव भेदकरि दोष प्रकारका उपदेश है । सो इहां . शुद्धनयप्रधान कथन है । तातें निषेधप्रधानकरि वर्णन है। तहां अप्रतिक्रमण अप्रत्याख्यान ऐसा कहा है, सो अतीतकालमै परद्रव्यका ग्रहण किया, ताकू अब भला जानै, ताका संस्कार रहै, 卐 ममत्व रहै, सो तौ द्रव्य अप्रतिक्रमण है । अर तिस परद्रव्यके ग्रहणके निमित्ततें रागादिकमाव + + + + + - THI
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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