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________________ व्रतरूप ऐसा व्यवहार चारित्र अभव्य भी करे है । तौऊ सो अभव्य चारित्रकरि रहित ही है, अज्ञानी मिथ्यादृष्टि ही है । जातें निश्चयचारित्रका कारण स्वरूप जो ज्ञान श्रद्धान, ताकरि फ तार्क शून्यपणा है । भावार्थ--अभव्य जीव महाव्रत समिति गुप्तिरूप व्यवहारचारित्र पार्ले तौऊ निश्चयसम्य卐 ज्ञान श्रद्वान विना सो सम्यक्वारित्र नाम न पावे है। तातें सो अज्ञानी मिथ्यादृष्टि ही रहे है । आगे शिष्य कहे है, “जो तार्के ग्यारह अंगका ज्ञान होय है," ताकू अज्ञानी कैसे कक्षा ? ताका 卐 उत्तर कहे हैं। गाथा தீத்5555555555 卐 卐 मोक्खं असतो अभवियसत्तो दु जो अघीएज्ज । पाठो या करेदि गुणं असद्दहंतस्स गाणं तु ॥ ३८॥ मोक्षमश्रदधानोऽभव्य सत्त्वस्तु योधीयीत । पाठो न करोति गुणमश्रदधानस्य ज्ञानं तु ॥३८॥ आत्मख्यातिः --- मोक्षं हि न तावदभव्यः श्रद्धचे शुद्धज्ञानात्मज्ञानत्यत्वात् । ततो ज्ञानमपि नासौ श्रद्ध ज्ञानमश्रद्दधानश्चाचाराद्येकादशांगं श्रुतमधीयानोऽपि श्रुताध्ययनगुणाभावान्न ज्ञानो स्यात् स किल गुणः श्रुताभ्ययनस्य यद्विविक्तवस्तुभूतज्ञानमयात्मज्ञानं तच विविक्तवस्तुभूतं ज्ञानमदवानस्याभव्यस्य श्रुताध्ययनेन न विधातु शकषेत ततस्तस्य तद्गुणाभाव:, ततश्च ज्ञानश्रद्धानाभावात् सोऽज्ञानीति प्रतिनियतः । तस्य धर्मश्रद्धानमस्तीति चेत् अर्थ- जो अभव्यजीव है, सो शास्त्रका पाठ पढे है परंतु मोक्षतत्वका श्रद्वानकूं नाहीं करता संता है, तातें सो ज्ञान श्रद्वान नाहीं करता पुरुषके गुण नाहीं करे है 1 1 टीका - अभव्यजीव है सो प्रथम तो निश्चयकरि मोक्षकूं नाहीं श्रद्वान करे है । जातें शुद्धज्ञानमय जो आत्मा, ताका ज्ञानकरि अभव्यकै शून्यपणा है, अभव्यकै शुद्धात्माका ज्ञान होय 卐 卐 प्रामुख फफफफफफफ 卐 卐 卐 卐 卐 卐 फ्र.. 卐 卐 ४१
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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