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________________ + + + + " जाते जे आत्माधित निश्चयनयकं आश्रितपुरुष हैं, तिनिके ही कर्मत छुटवापना है। बहुरिः ॥ पराश्रित जो व्यवहारनय ताकै तौ एकांतकरि कर्मत नाहीं छूटता जो अभव्य, ताकरि भी आश्रीयमाणपणा है। भावार्थ-आत्माके परके निमित्त अनेक भाव होय हैं, ते सर्व व्यवहारनयके विषय हैं, तातें ॥ प्र व्यवहारनय तौ पराश्रित है । अर जो एक अपना स्वाभाविकभाव है, सो निश्चयनयका विषय है। तात निश्चयनय आत्माश्रित है। सो अध्यवसान भी व्यवहारनयका ही विषय है। ताते अध्यवसानका त्याग सो व्यवहारनयका ही त्याग है। सो निश्चयनयकू प्रधानकरि व्यवहारनयका त्यागका उपदेश है। जाते जे निश्चयके आश्रय प्रवर्ते हैं, ते तो कमंत छूटे हैं अर जे एकांताकर लगनहारनपही साशय अद्यते हैं, ते कर्मत कबहू नाहीं छूटे हैं। आगै पूछे है, जो अभव्यकरि भी व्यवहारनय कैसें आश्रय कीजिये है ? ऐसे पूछे उत्तर कहे हैं। गाथा_वदसमिदी गुत्तीओ सीलतवं जिणवरेहिं पण्णत्तं । कुव्वंतोवि अभविओ अण्णाणी मिच्छदिट्ठीय ॥३७॥ व्रतसमितिगुप्तयः शीलतपो जिनवरैः प्रज्ञप्त । कुर्वन्नप्यभव्योऽज्ञानी मिथ्यादृष्टिस्तु ॥३७॥ 卐 आत्मख्यातिः-शीलतपःपरिपूर्ण त्रिगुप्तिपश्चसमितिपरिकलितमहिंसादिपंचमहायतरूपं, व्यवहारचारित्र, अभ- 5 ___न्योऽपि कुर्याद तथापि स निश्चारित्रोक्षानी मिथ्यादृष्टिरेव निश्चयचारित्रहेतुभूतज्ञानश्रद्धाशून्यत्वात् । ॥ तस्यैकादशांगज्ञानमस्ति ? इति चेन् .. अर्थ-वत समिति गुप्ति शील तप जिनेश्वरदेवनें कहे हैं । तिनिकू करता संता भी अभव्य- जीव है सो अज्ञानी मिथ्यादृष्टि ही है। टीका-शीलतपकरि परिपूर्ण, तीन गुप्ति पांच समितिकरि संयुक्त, अहिंसादिक पांच महा 55 5 5 5 5 ++ + ++ . +
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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