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________________ + "सो ही है। अर अवस्थाका दृष्टि पर्यायदृष्टि है, ताकरि देखिये तब मलिन ही दीखे। तैसे नय卐 आत्माका द्रव्यस्वभाव ज्ञायकपणामात्र है, अर ताकी अवस्था पुद्गलकर्मके निमित्तते रागादिरूप मलिन है । सो यह पर्याय है ताकी दृष्टिकरि देखिये, तब मलिन ही दीखे अर द्रव्यदृष्टिकरि .. 5 देखिये तब ज्ञायकपणा तो ज्ञायकपणा ही है, किछू जडपणा न भया । सो इहां द्रव्यदृष्टिकू प्रधान , .. करि का है। जो प्रमत्त अप्रमत्तका भेद है, सो तो परद्रव्यके संयोगजनितपर्याय है। सो यह 7 अशुद्धता है, सो द्रव्यदृष्टि में यह गौण है, व्यवहार है, अभूतार्थ है, असत्यार्थ है, उपचार है।" - द्रव्यदृष्टि शुद्ध है, अभेद है, निश्चय है, भूतार्थ है, सत्यार्थ है, परमार्थ है। तातें आत्मा ज्ञायक , " है, यामैं भेद नाहीं याते प्रमत्त अप्रमत्त न कहिये । बहुरि ज्ञायक ऐसा भी नाम ज्ञेयके जाननेकरि + कहिये है, तातें शेयका प्रतिबिंब झलके तब, वैशा ही अनुधाव जाये । सो वह भी अशुद्धपणा, याकै नाहीं कहिये, जातें जैसें ज्ञेय ज्ञानमें प्रतिभास्या, तैसें ज्ञायकहीका अनुभवन करतें ज्ञायक ही 卐 है। यह मैं जाननहारा हं, सो मैं ही हूंदूजा कोई नाहीं है, ऐसा आपका आपकै अभेदरूप अनुभव हुवा, म तब तिस जाननक्रियाका कर्ता आप ही है, अर जाकू जाण्या सो कर्म भी आप ही है। ऐसे एक ज्ञायकपणामात्र आप शुद्ध है, यह शुद्धनयका विषय है । अन्य परसंयोगजनित भेद हैं; ते सर्व .. भेदरूप अशुद्धद्रव्यार्थिकनयके विषय हैं । सो शुद्धद्रव्यको दृष्टि में यह भी पर्यायार्थिक ही है, सो 1 व्यवहारनय ही है, ऐसा आशय जानना । । बहुरि इहां ऐसा भी जानना, जो-जिनमतकी कथनी स्थाद्वादरूप है। सो शुद्धता अर " अशुद्धता दोऊ वस्तुधर्म हैं, सो अशुद्धनयकू सर्वथा असत्यार्थ ही मानना। जो वस्तुधर्म है, सो 卐 वस्तुका सत्त्व है, परद्रव्यके संयोगते भये यह ही भेद है। इहां अशुद्धनयकू हेय कह्या है, सोज अशुद्धनयका संसार विषय है, तामें आत्मा क्लेश भोगवे है, सो आप परद्रव्यतें भिन्न होय, तब .. प्र संसार मिटे, तब क्लेश मिटे, । ऐसें दुःख मेटनेकू शुद्धनयका प्रधान उपदेश है। अर अशुद्धनयकू असत्यार्थ कहनेतें ऐसा तो न समझना, जो-यह वस्तुधर्म सर्वथा ही नाही, आकाशके फूलकीज्यों के + + + + 5
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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