SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 417
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5 वोयपणाकरि दोयपणा है, सो याके दोयपणे कारणका भेद नाहीं हेरणा जो पुण्यका कारण 5 तौ अन्य है अर पापबंधका कारण किछ और है। एक ही इस अध्यवसायकरि दुःखी करूं हूं, मारूं हूं ऐसा तथा सुखी करू हूं, जीवाऊ हूँ ऐसा दोय प्रकार शुभ अशुभ अहंकाररसकरि २६ भरयापणाकरि पुण्यपाप दोऊहीनिका बंधका कारणपणाका अवरोध है । एक ही अध्यवसायकरि पुण्यपाप दोऊका बंध है । मय फ्रक फ्रफ़ फ्रफ़ फ्र 卐 फ भावार्थ -- यह अज्ञानमय अध्यवसाय ही बंधका कारण है। तहां शुभ अध्यवसाय तौ जीवावना सुखी करना ऐसा है बहुरि मारना दुःखी करना यह अशुभ अध्यवसाय है । सो अहंकाररूप मिथ्याभाव दोऊही में हैं, तातें ऐसा न जानना, जो शुभका कारण तौ और है अर 5 अशुभका कारण तौ और है । अज्ञानमयपणाकरि दोऊ अध्यवसाय एक ही है। आगे कहे हैं जो ऐसें होतें अध्यवसाय ही बंधका कारण होतें जो यह हिंसाका अध्यवसाय है, सो ही हिंसा है, फ यह आया । गाथा 卐 卐 卐 卐 अज्झवसिदेण वंधो सत्ते मारे हि माव मारे हि । एसो वंघसमासो जीवाणं णिच्छयणयस्स ॥ २६ ॥ अध्यवसितेन बन्धः सत्वान् मारयतु मा वा मारयतु । एष बन्धसमासो जीवानां निश्चयनयस्य ॥ २६ ॥ 卐 5 फ परेग कतुमशक्यत्वात् । फफफफफफफफफफफफफ 卐 आत्मख्यातिः--परजीवानां स्वकर्मोदयवैचित्र्यवशेन प्राणन्यपरोपः कदाचिद् भवतु, कदाचिन्मा भवतु । य एव निस्मीत्यहंकाररसनिर्भरी हिंसायामध्यवसायः स एव निश्चयतस्तस्य बंधहेतुः, निश्चयेन परभावस्य प्राणन्यपरोपस्य अथाध्यवसायं पापपुण्योर्बन्धहेतुत्वेन दर्शयति अर्थ - निश्चयनका यह पक्ष है, जो जीवनिकं मारो अथवा मति मारो, यह जीवनिकै कर्मबंध है सो अध्यवसायहीकरि है, यह ही बंघका संक्षेप है । 卐 卐 ३६
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy