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________________ - $ 岳s 乐乐 乐 卐卐 करि सहित है, तातें निर्जराका उदय होनेकरि पूर्ववंधका नाश होय है। सो एक प्रवाहरूप झाम-" 5 रूप रसका आप पान कारे 'जैसे कोई मद पीयकरि मन्न भया नृत्यके अखाडेमैं नृत्य को है। तैसें निर्मल आकाशरूप रंगभूमिमै नृत्य करे है। इहां कोई कहे-सम्यग्दृष्टिकै निर्जरा होना तो कहते आये अर बन्ध होना न कया। सो 卐 गुणस्थाननिकी परिपाटीमें सिद्धान्तमें अविरतसम्यग्दृष्टीते लगाय बंध कया है, अर घातिकर्म- ।। निका कार्य आत्माका गुण घात करना है, सो दर्शन ज्ञान सुख वीर्य इनि गुणनिका घात भी । 卐 विद्यमान है, सो चरित्रमोहका उदय नवीन बन्ध भी करे ही है, अर मोहके उदयमें भी बन्धन' मानिये तो मिथ्यादृष्टीकै मिथ्यात्व अनन्तानुवन्धीका उदय होते भी बंधका न होना क्यों न मानिये ? ताका समाधान-जो बन्ध होनेमें प्रधान मिथ्यात्व अनंतानुबंधीका उदय ही है अर) सम्यग्दृष्टीके तिनिका उदयका अभाव है, सो चारित्रमोहके उदयते यद्यपि सुखगुणका घात है .. अर अल्प स्थिति अनुभाग लिये मिथ्यात्व अनंतानुबंधी विना तथा तिनिका लारकी अन्य प्रकृतिम 9 विना घातिकर्मकी प्रकृतिनिका तथा अघातिकर्मकी प्रकृतिनिका बन्ध भी होय है । तोऊ जैसा मिथ्यात्व अनंतानुबंधीसहित होय तैसा होय नाहीं। अनन्तसंसारका कारण तो मिथ्यात्व अनंता नुबन्धी है, तिनिका अभाव भये पीछे तिनिका बन्ध होय नाहीं। अर आत्मा ज्ञानी भया तब + 1- अन्य बंधकी कौन गिनती करे ! वृक्षकी जड कटै पीछे हरे पान रहनेका कहा अवधि ! ताते इस अध्यात्मशास्त्रवि तौ सामान्यपणे ज्ञानी अज्ञानी होनेहीका प्रधान कथन है। ज्ञानी भये ॥ पीछे किछु कर्म रहे है ते सहज ही मिटते जायगे। जैसे कोई पुरुष दरिद्री था, सो झोपडीमैं वसे था, ताकू भाग्य उदयकरि वडा महलकी धनसहित प्राप्ति भई । तामैं बहुत दिनका कजोडा 9 भरथा था, सो या पुरुषने आय प्रवेश किया तिसही दिनतें यह तौ महलका धनी सम्पदावान् , वणि गया। अब कजोडा झाडना है, सो अनुक्रमतें अपना बलके अनुसार झाडे है। जब सब" 卐 झाडि जायगा उज्वल होय जायगा, तब परमानन्द भोगेहीगा, ऐसें जानना । ऐसें रंगभूमिमें है + + + 55
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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