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________________ + ॐॐॐ + + + + तथा ज्ञान्यपि यदि ज्ञानस्वभावं तकं प्रहाय । अज्ञानेन परिणतस्तदा अज्ञानतां गच्छेत् ॥३१॥ चतुष्कम् ।। आत्मल्यापिक....पथा र शंखव परद्रव्यमुप जानस्या५ न परेण श्वेतभावः कृष्णीकर्तुं शक्येत परस्य पर- ॥ 9 भावतत्यानिमित्तत्त्वानुषपत्तेः। - तथा किल ज्ञानिनः परद्रव्यमुपभुज्ञानस्यापि न परेण ज्ञानमज्ञानं कर्तुं शक्येत परस्य परभावतच्चनिमित्तत्वानुष । पतेः । ततो ज्ञानिनः परापराधनिमित्तो नास्ति बंधः। ____ यथा च यदा स एव शंखः परद्रव्यमुपशुजानोऽनुपभुञ्जानो वा श्वेतभावं प्रहाय स्वयमेव कृष्णभावेन परिणमते ग 卐 तदास्य खेतभावः स्वयंकृतः कृष्णभावः स्यात् ।। .. तथा यदा स एव ज्ञानी परद्रव्यमुपभुज्ञानोऽनुपभुजानो वा ज्ञानं प्रहाय स्वयमेवाज्ञानेन परिणमेत तदास्य ज्ञान । + स्वयंकृतमज्ञानं स्यात् । ततो ज्ञानिनो यदि (?) स्वापराधनिमित्तो बंधः । + अर्थ-जैसा शंखोंका श्वेत स्वभाव है, सो शंख सचित्त अचित्त मिश्रित अनेक प्रकार द्रव्य निळू भक्षण करे है, तौऊ तोका श्वेत स्वभाव कृष्ण करनेकू समर्थ नाहीं हूजिये है। तैसा ज्ञानी फ़ भी अनेक प्रकारके सचित्ताचित्तमिश्र द्रव्यनिकू भोगवे है, तोऊ ताका ज्ञान अज्ञानपणाकू प्राप्त ।। करनेकू समर्थ न हजिये है । बहुरि जैसा सो ही शंख जिस काल अपने तिस खेतभावकू छोडि 卐 कृष्णभावकू प्राप्त होय, तव शुक्लपणाकू छोडै तैसा ज्ञानी भी अपना तिस ज्ञान स्वभावकू जिसके .. काल छोडि अज्ञानकरि परिणम, तिस काल अज्ञानताकू प्राप्त होय । टीका-जैसा शंख परद्रव्या भक्षण करता रहे है, ताका श्वेतभावकू परकरि कृष्णस्व-9 1- भावस्वरूप करनेकू समर्थ न हूजिये है। जाते परकै परभावस्वरूप करनेका निमित्तपणाकी 1 अप्राप्ति है तैसा परद्रव्य भोगवता जो ज्ञानी, ताका ज्ञान• अज्ञानता स्वरूप करने निश्चय का करि परकरि नाहीं समर्थ हूजिये है । जाते परके परभावस्वरूप करनेका निमित्तपणाकी अप्राप्ति । है, तातें ज्ञानीकै परकै परभावस्वरूपकरने किये अपराधके निमित्ततें बंध नाहीं है। बहुरि जिस " + + 555 ++ 5 5 + 5 +
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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