SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 356
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फफफफफफफफफफफफ ५ சு 卐 卐 卐 5 आगे पूछे है, अनागत कालका कर्मका उदयकूं ज्ञानी काहेतें नाहीं वांछे है ? ताका उत्तर 5 कहे हैं। गाथा- फ्र जो वेददिवेदिजदि समए समए विणस्सदे उहयं । तं जागो दुगाणी उभयमवि ण कंखदि कयावि ॥ २४ ॥ यो वेदयते वेद्यते समये समये विनश्यत्युभयं । तद् ज्ञायकस्तु ज्ञानी, उभयमपि न कांक्षति कदाचित् ॥२४॥ 5 आत्मख्यातिः - ज्ञानी हि तावद् ध वत्वात् स्वभावभावस्य टंकोत्कीर्णेकशायकभावो नित्यो भवति यौ तु वेद्यवेदकभाव तो तूत्पन्नप्रध्वंसित्याद्विभावभावानां क्षणिकौ भवतः । तत्र यो भाबि कांश्रमाणं वेद्यभावं वेदयते स यावद् भवति तावत्कांक्षमाणो भावो विनश्यति । तस्मिन् विनष्टे वेदको भावः किं वेदयते १ यदि कक्षमाणवेद्यभावपृष्ठभाविनमन्यं भावं वेदयते तदा तद्भवनात्पूर्व विनश्यति कस्तं वेदयते १ यदि वेदकभावपृष्टभावी भावोम्पस्तं वेदयते तदा तद्भवनात्पूर्वं स विनश्यति । किं स वेदयते : इति कांक्ष्यमाणभात्रवेदनानवस्था तां च विजानन् ज्ञानी न किंचिदेव कांक्षति । फफफफफफफफफफफफ अनुक्रम अर्थ - जो अनुभव करनेवाला भाव, सो वेदकभाव कहिये । बहुरि जो अनुभवन करनेयोग्य भाव, सो वेद्यभाव कहिये । सो ऐसे वेदक अर वेद्य ये दोष भाव आत्माके होय हैं। सो फ करि होय है, एककाल होय नाहीं, सो दोऊ ही समय समय विषे विनशि जाय है, अर आत्मा दोऊ भावनिवि नित्य है । तातें ज्ञानी आत्मा दोऊ भावनिका ज्ञायक है जाननेवाला ही है । फ इनि दोऊ ही भावनिकुं ज्ञानी कदाचित् भी नाहीं वांछे है I टीका - ज्ञानी है सो तो "अपना स्वभावभावकै ध्रुवपणा है" तातें टंकोत्कीर्ण एकज्ञानस्वरूप नित्य है । बहुरि जो वेदना करनेवाला अर वेदने योग्य ऐसे दोय वेदक अर वेद्यभाव हैं ते 5 卐 उपजना अर विनसनारूप हैं । जातें विभावभाव हैं, तिनिकै क्षणिकपणा है, तातें दोऊ भाव 卐 卐 卐 卐 卐 भा
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy