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________________ ममममम फ卐 + +5 卐 गया सो यह विना कह्या सामर्थ्यते ही जानीये याकैपरिग्रह नाही', गयेकी वांछा ज्ञानीके कैसी होय ? टीका-कर्मका उदयका उपभोगना तीन प्रकार है। अतीतकालका, प्रत्युत्पन्न कहिये वर्तमान कालका, अनागत कहिये आगामी कालका ऐसे । तहां अतीतकालका तौ वीति ही गया, सो गया ॥ ॐ सो गया। यात ज्ञानी परिग्रहभावकू नाहीं धारे है। बहुरि अनागत जो आगामी कालमैं .... आवेगा, सो ताकी वांछा करे, तब परिग्रहभावकू धारे, सो ज्ञानीकै आगामी वांछा नाही, तातें परिग्रहभावकू नाही धारे है। जिस कर्मक ज्ञानी अपनी अहित जान्या, ताके उदयके ।। 17 भोगकी आगामी वांछा काहे करे ? बहुरि प्रत्युत्पन्न कहिये वर्तमानका उपभोग है, सो ॥ रागबुद्धि करि प्रवर्तमान होय तौ परिग्रहभावकू धारै । सो ज्ञानीकै वर्तमानका उपभोग रागबुद्धि करि प्रवर्तमान नाहीं दीखे है। जातें जानीके अज्ञानमयभाव जोरागबुद्धि ताका अभाव है। बहुरि । केवल वियोगबुद्धि ही करि प्रवर्तमान होय, सो निश्चय करि परिग्रह नाही है। जाते ज्ञानीकी यह 卐 बुद्धि है-जोजाका संयोग भया,ताका वियोग अवश्य होयगा । ताते विनाशीकतै प्रीति न करनी।। तातें वर्तमान कर्मका उदयका उपभोग है, सो ज्ञानीकै परिग्रह नाही है । वहरि अनागत आगामी कर्मका उदयकू नाही वांछता जो ज्ञानी ताकै सो अनागत उपभोग परिग्रह नाही है। जाते ज्ञानीकै अज्ञानमयभावरूप जो वांछा, ताका अभाव है। तातें अनागत भी कर्मका उदयका उपभोग ज्ञानीकै परिग्रह नाहीं होय । म 9 भावार्थ-अतीत तौ गया ही है, अनागतकी वांछा नाही, वर्तमानका विर्षे राग नाहीं है ये जानै ताविषै राग कैसा होय ? तातें ज्ञानीके तीन ही काल सम्बन्धी कर्मका उदयका भोगना - परिग्रह नाहीं । वर्तमानके कारण मिलावे है सो पीडा न सही जाय, ताका इलाज रोगवत् करे ॥ म है। यह निवलाईका दोष है। कुतोऽनागतं मानी नाकांक्षतीति चन $ $$ $ 5 乐乐 乐乐 乐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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