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________________ मय ३२ फफफफफफफफफफफफ 卐 卐 टीका- -इच्छा है सो परिग्रह है । जाकै इच्छा नाहीं तार्के परिग्रह भी नाहीं । बहुरि इच्छा है सो अज्ञानमय भाव है, सो ज्ञानीकै अज्ञानमय भाव नाहीं है, ज्ञानीकै तो ज्ञानमय ही भाव 5 हे तातें ज्ञानी अज्ञानमय भाव जो इच्छा, ताके अभावतें पानकूं नाही इच्छे हैं । तिस कारणकरि ज्ञानी पानका परिग्रह नाहीं है । ज्ञानमय जो एक ज्ञायकभाव ताके सद्भावतें यह ज्ञानी पानका केवल ज्ञायक ही हैं। 卐 अपरिग्गहो अणिच्छो भणिदो पाणं च णिच्छदे णाणी । अपरिग्गहो दु पाणस्स जाणो तेण सो होदि ॥२१॥ अपरिग्रहो अनिच्छो भणितः पानं च नेच्छति ज्ञानी । अपरिग्रहस्तु पानस्य ज्ञायकस्तेन स भवति ॥ २१ ॥ आत्मरूपातिः--इच्छा परिग्रहः, तस्य परिग्रहो नास्ति यस्येच्छा नास्ति इच्छा त्वज्ञानमयो भावः अज्ञानमयो फ 15 भावस्तु ज्ञानिनो नास्ति । ज्ञानिनो ज्ञानमय एत्र भावोऽस्ति । ततो ज्ञानी, अज्ञानमस्य भावस्य इच्छाया अभावात् पानं नेच्छति । तेन ज्ञानिनः पानपरिग्रहो नास्ति ज्ञानमयस्यैकस्य शायकभावस्य भावात् केवलं पानकस्य ज्ञायक एवायं स्यात् । अर्थ - इच्छा रहित है तो परिग्रहरहित का है। बहुरि ज्ञानी है सो पान कहिये जल आदिक 455 पीवना, ताकूं इच्छे नाहीं है । तातें पानका परिग्रह ज्ञानीकै नाहीं है । तिस कारणकार ज्ञानी पानका ज्ञायक ही है । 卐 卐 फ्र - भावार्थ - आहारवत् जानना। आगे कहे हैं, जो ऐसे ही अन्य जे अनेक प्रकार परजन्य भाव, तिनिकूं ज्ञानी नाही इच्छे हैं। गाथा ககககககககழபிமிககழி इव्वादु एदु विवि सव्वे भावेय णिच्छदे णाणी । जाणगभावो णियदो णीरालंबीय सव्वत्थ ॥ २२ ॥ 4. 卐 फ्र 卐 फ 卐 卐 5 卐 卐 卐 卐 卐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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