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________________ + $ + $ + $ 'म -... ... ... . - . म्याकस्य वस्तुनी निश्चीयमानत्वात् । ततो व जालानात्मानी सानाति स जीपाजीची म बानाति । वस्तु जोषा- जीवौ म जानाति स सम्यग्दृष्टिरेव न भवति । ततो रागी भानाभावान्न भवति सम्यग्दृष्टिः। 5 अर्थ-निश्चयकरि जिस जीवकै रागादिकना परमाणुमार काहिये देशमान अंशमात्र भी वर्ते है प्राम सो जीव सर्व आगमका धारी होय-सर्व शास्त्र पढथा होय, तौऊ आत्माकू नाहीं जाने है। बहुरि । ा आत्माकू नाहीं जानता संता अनात्मा जो पर, ताकू भी नाहीं जाने है, बहुरि आत्मा अनात्मा 1. नाहीं जानता संता जीव अजीव पदार्थकू भी नाही जाने है, बहुरि जो जीवकू नाहीं जाने " सो सम्यग्दृष्टि कैसे होय ! 卐 टीका-जिस जीवके अज्ञानमय जे रागादिकभाव, तिनिका लेशमात्रका भी सद्भाव है सो 卐 जीव श्रुतकेवली सरीखा भी होय तौऊ ज्ञानमयभावका अभावत आत्माकू नाहीं जाने है। वहुरि जो अपने आत्माकू नाहीं जाने है सो अनात्माकू भी नाहीं जाने है। जातें अपना का स्वरूप अर परका स्वरूपका सत्व अर असत्त्व दोऊ एक ही वस्तुका निश्चयमें आय जाय है, का तातें ऐसा है-जो आत्माकू अर अनात्मा दोऊक नाहीं जाने है सो जीव अजीव वस्तूकू ही नाहीं जाने है, जीव अजीवकू नाहीं जाने है, सो सम्यग्दृष्टि नाहीं है । तातें रागी है सो ज्ञानका अभावतें सम्यग्दृष्टि नाही है। 卐 भावार्थ-इहां रागी कहनेकरि अज्ञानमय राग द्वेष मोह भाव लिये तहां अज्ञानमय कहने- 4 करि मिथ्यात्व अनंतानुबंधीतें भये रागादिक लेने । मिथ्यात्वविना चारित्रमोहका उदयका राग न लेना । जाते अविरतसम्यग्दृष्टि आदिके चारित्रमोहके उदयसंबंधी राग है, सो ज्ञानसहित है, : ताकू रोगवत् जाने है, तिस रागसू याकै राग नाहीं है, कर्मोदयतें राग भया है, ताकू मेटया - चाहे है । बहुरि रागका लेशमात्र भी याको अभाव कहा, सो ज्ञानीकै अशुभराग तो अत्यंत गौण " ३२ है। बहुरि शुभराग होय है, सो सर्वशास्त्र पढि जाय, मुनि होय, व्यवहारचारित्र भी पाले, अर तिस शुभरागकू भला जानि लेशमात्र भी तिस रागसू राग करे, तो जानिये-याने अपना $ $ $ $ $ $ ' s 5 卐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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