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________________ + + + + 乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐 $乐 乐乐 乐 जज विशेष राग कहा है, तैसें ही रागकी जायगां पद पलटनेकरि द्वेष मोह क्रोध मान माया लोभ कर्म , नोकर्म मन वचन काय श्रोत्र चक्षु प्राण रसन स्पर्शन ए पद धरि सोलह सूत्र व्याख्यान करने । 卐 बहुरि इस ही उपदेशकरि अन्य भी क्विारणे । याप्रकार सम्यग्हष्टि आपकू जानता संता, बहुरि रागकू छोडता संता, नियमते ज्ञानवैराग्यकरि युक्त होय है। आगे इस ही अर्थकू सृचती गाथा 卐 कहे हैं । गाथा एवं सम्माइट्ठी अप्पाणं मुणदि जाणगसहावं । उदय कम्मविधागं च मुअदिलचं वियाणंतो॥८॥ एवं सम्यग्दृष्टिः आत्मानं जानाति ज्ञायकस्वभावं । उदयं कर्मविपाकं च मुंचति तत्त्वं विजानन् ॥८॥ आत्मख्याति:—एवं सम्यग्दृष्टिः सामान्येन विशेषेण च परस्वभावेभ्यो भावेभ्यो सर्वेन्योऽपि विविच्य टंकोल्कीर्णेक卐 शायकस्वभावमात्मनस्तत्त्वं विजानाति । तथा तवं विजानंच स्वपरभावोपादानापोहननिपाय स्वस्य वस्तुत्वं प्रथयन् कर्मोदयविपाकप्रभवान् भावान् सर्वानपि मुञ्चति । ततोयं नियमात् ज्ञानवैराग्याभ्यां संपन्नो भवति । ___अर्थ-ऐसें सम्यग्दृष्टि आपकू ज्ञायकस्वभाव जाने है अर कर्मका उदयकू कर्मका विपाक जानि 1. ताकू छोडे है । कैसा भया संता ? तत्व कहिये वस्तूका यथार्थस्वरूप ताकू जानता संता प्रवर्ते है। टीका-याप्रकार सम्यग्दृष्टि है सो सामान्यकरि तथा विशेषकरि सर्व ही परभावनितें भिन्न 卐 होयकरि टंकोत्कीर्ण एक ज्ञायकभाव स्वभावरूप आत्माका तत्वकू नीके जाने है। बहुरि तिस 5 प्रकार तत्त्वकू नीके जानता संता स्वभावका ग्रहण अर परभावका त्यागकरि निपजने योग्य जो 卐 अपना वस्तुपणा, ताहि विस्तारता फैलावता संता कर्मका उदयके विपाककरि निपजे जे भाव, .. तिनि सर्वनिकू छोडे है तातें यह सम्यन्दृष्टि नियमते ज्ञानवैराग्यकरि संयुक्त होय है, यह सिद्ध भया।
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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