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________________ फफफफफफफफफफफफ 卐 अर्थ-जैसें वैद्यपुरुष है सो विषकूं उपभोगता संता भी मरणकूं नाहीं प्राप्त होय है, तैलें 5 पुद्गलकर्मका उदयकूं ज्ञानी भोगवे है, तौऊ बंधे नाहीं है । 5 प्रा टीका–जैसे कोई विषय है, सो अन्यकू मरणका कारण ओ विष, ताकू भोगवता भी 5 अमोघविया कहिये अचूक सफल मंत्र यंत्र औषध आदिकी विद्या सामर्थ्यते रोकी है तिस 5 विषकी मारणशक्ति जानें, तिसपणातें मरणकूं नाहीं प्राप्त होय है । तैसें पुद्गलकर्मका उदय 卐 卐 है सो अज्ञानी निकै रागादिभावनिक सद्भावकरि बंधका कारण है, ताकू ज्ञानी भोगवता संता 5 भी अमोघ अचूक सत्यार्थज्ञानके सामर्थ्यते रागादि भावनिका अभाव होते संते रोकी है तिस कर्मके उदय आगामी बंध करनेकी शक्ति जाने, तिसपणाकरि आगामी कर्मकरि नाहीं बंधे फ्र है। फफफफफफफफफफफफ जह मज्जं पिबमाणो अरदिभावेण मज्जदि ग पुरिसो । दव्वभोगे अरदो णाणीविण वज्झदि तहेव ॥ ४ ॥ भावार्थ-जैसे अपनी विद्याकी सामर्थ्यकर विrat मारनेकी शक्तिका अभाव करे है, ताकू खावे तौऊ तिसतें मरे नाहीं । तैसें ज्ञानीके ज्ञानकी सामर्थ्य ऐसी है, जो कर्मका उदयकी 5 बंध करनेकी शक्ति रोके है । तातें तिसके कर्मका उदय भोग में आवै तौऊ आगामी बंध नाहीं 5 करे है । यह सम्यग्ज्ञानकी सामर्थ्य है । आगे वैराग्यका सामर्थ्य दिखावे हैं । गाथा 卐 卐 卐 卐 卐 卐 卐 आत्मख्यातिः - यथा कश्चित्पुरुषो मेरेयं प्रति प्रवृत्ततीभारतिभावः सन् मैरेयं पिवन्नपि तीभारतिसामर्थ्यान माद्यति तथा रागादिभावानामभावेन सर्वद्रव्योषभोगं प्रति प्रवृत्तीत्रविरागभावः सन् विषयानुपभुञ्जानोऽपि तीव्रविराग 15 भावसामर्थ्यान्न बध्यते ज्ञानी । यथा मद्यं पिवन् अरतिभावेन माद्यति न पुरुषः । द्रव्योपभोगे अरतो ज्ञान्यपि न बध्यते तथैव ॥४॥ 卐 卐 卐 ३१
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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