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________________ 5 सर्वपदार्थ तथा जीव नामा पदार्थ ताका प्रकाशक है । बहुरि अरहंत भगवानका प्रवचन जो समय परमागम ताका अवयव है अंश है। ऐसा समयप्राभृतका मैं अपना अर परका अनादिकालतें भया फ्र जो मोह अज्ञान मिथ्यात्व ताका नाश होनेके अर्थि परिभाषण करूंगा । भावार्थ फ्र सूत्र आचार्यनें वक्ष्यामि क्रिया कही, ताका अर्थ टीकाकार वच परिभाषणे 45 धातु परिभाषण अर्थ लेकर कया है, सा याका ऐसा आशय सुचे है, जो चौदहपूर्व में ज्ञानप्रवाद फ नामा छट्टा पूर्व है, तामें बारह वस्तु अधिकार हैं, तिनिमें एक एक वस्तुमै वीस वीस प्रामृत 5 अधिकार हैं, तिनिमें दशमावस्तुमें समय नामा प्राभृत है, ताका परिभाषण आचार्य करें हैं, सूत्र卐 foot दश जाति कही है। तिनिमैं एक जाति परिभाषा भी है, तहां जो अधिकारके यथास्थान 5 अर्थ में सूचै सो परिभाषा कहिये, सो इस समय नामा प्राभृतके मूल सूत्रनिका शब्दनिका ज्ञान तो पहिले बडे आचार्य निकै था, अर तिसके अर्थका ज्ञान आचार्यनिकी परिपाटीके अनुसार क श्रीकुंदकुंद आचार्यको भी था, सो तिनिलें यह समयप्राभृतके परिभाषा सूत्र बांधे हैं । सो तिस प्रातके अर्थ ही सूचे है ऐसा जानना । 卐 बहुरि मंगल अर्थ सिद्धनि नमस्कार किया अर तिनिका सर्व ऐसा विशेषण किया, सो सिद्ध क 5 अनंत हैं, अन्यमती शुद्ध आत्मा एक कहे हैं, तिनिका व्यवच्छेद जानना । बहुरी संसारीकै शुद्ध आत्मा साध्य है, सो साक्षात् शुद्ध आत्मा सिद्ध है, तिनिकं नमस्कार उचित है । अर काहू 15 इष्टदेवका नाम न लिया ताकी चरचा टीकाकारके मंगलपरी करी है, सो इहां भी जाननी 5 I बहुरी श्रुतकेवलीशब्दका अर्थ में श्रुत तो अनादिनिधनप्रवाहरूप आगम कह्या, अर केवलीशब्द 5 करि सर्वज्ञ अर परमागमके जाननहारे श्रुतकेवली कहे । तिनितें समयप्राभृतकी उत्पत्ति कही, प्रमाणता कही, अर अपनी ही बुद्धिकल्पित कहनेका निषेध भया, अन्यवादी छद्मस्थ अपनी बुद्धितें 5 पदार्थका स्वरूप जैसेतैसे कह करी विवाद करे हैं सिनिका असत्यार्थपना जनाया । बहुरि अभिषेय, संबंध, प्रयोजन इस ग्रंथके प्रगट ही हैं । अभिषेय तो शुद्ध आत्माका स्वरूप है, अर संबंध ताके 卐 4 ૨૨ 卐 फ्रफ़ फ
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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