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________________ F २२ 555555 卐 टीकाकारके वचन-- तहां, अथशब्द तो मंगलके अर्थ में है । बहुरि प्रथमत एव कहिये ग्रंथकी 5 आदिही सिद्ध भगवान् हैं, तिनि सर्वहीकू, भावद्रव्यस्तवन कर अपने आत्माविषे अर परके आत्मावि स्थापि करि, इस समय नाम प्राभृतका भाववचन अर द्रव्यवचनकरि परिभाषण जो आत्मा, 卐 आरंभिये है, ऐसें श्रीकुंदकुंदाचार्य कहे हैं। कैसे हैं सिद्ध भगवान् ? सिद्धनामतें साध्य समय 卐 卐 5 ताकै प्रतिच्छंदके स्थान हैं, जिनिका स्वरूप संसारी भव्य जीव चितवन करि तिनिसमान अपना 卐 सारूपकं ध्याय तिरिसारिखे होय हैं । बहुरि चारीगति विलक्षण जो पंचमगति मोक्ष, ताही 5 पाइये हैं। कैसी है पंचमगति ? स्वभावतें उपजी हैं, तातें ध्रु वपणाकूं अवलंबे हैं, इस विशेषणकरि वारी गति परिनिमित्ततें होय हैं, तातें ध्रुव नाहीं-विनाशीक है, ताका व्यवच्छेद भया । बहुरि कैसी है ? अनादितें अन्यभाव जे पर, तिनिके निमित्त भई परविषै परिवृत्ति कहिये भ्रमण, ताकी 5 15 विश्रांति कहिये अभाव ताका वशकरि अचलपणाकूं प्राप्त भई है । इस विशेषणकरि चारी गतीकै परनिमित्ततें भया भ्रमण है, ताका व्यच्छेद भया । बहुरि कैसी है ? समस्त जे जगतमें उपमान 5 5 पदार्थ तिनितें विलक्षण अद्भुत माहात्म्यकरि नाहीं विद्यमान है काहूकी उपमा जाकै ऐसी है। इस विशेषण करि चारी गतीकै परस्पर कथंचित् समानयणा पाईये है, ताका व्यवच्छेद भया । 5 बहुरि कैसी है ? अपवर्ग है नाम जाका । इस विशेषणतें धर्म, अर्थ, काम, इनिकं त्रिवर्ग कहिये हैं; सो मोक्षगति इस वर्ग में नाहीं, यातें अपवर्ग नाम पाया है। ऐसी पंचमगतीकूं सिद्ध भगवान् प्राप्त 5 भये हैं । 卐 फ्र 卐 बहुरि कैसा है यह समयप्राभृत ? अन्नादिनिधन जो श्रुत कहिये परमागम शब्दब्रह्म, ताकरि प्रकाशितपणाकरि, बहुरि समस्तपदार्थनिका सार्थ कहिये समूह, ताके साक्षात्करणहारे जे केवली फ भगवान् सर्वज्ञ, तिनिकरि प्रणीतपणाकरि, तथा तिनि केवलीनिके निकटवर्ती साक्षात् सुननेवाले जे श्रुतवली गणधरदेव आप आप अनुभव करते तिनिकरिभाषितपणाकरि प्रमाणताकूं प्राप्त भया है, 5. अन्यवादीनिके आगमकीज्यों छद्मस्थहीका कल्या नाहीं है, जातें अप्रमाण होय । बहुरि समय फ्र जो 555555 फ 点
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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