SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 316
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 步 步 % 步 % 乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 कर्मणोऽभावेन च नोकर्मणामपि जायते निरोधः।। नोकर्मनिरोधेन च संसारनिरोधनं भवति ॥१२॥ त्रिकलम्।। आत्मख्यातिः--संति तावज्जीवस्य, आत्मकमैकत्वाशयमूलानि मिथ्यात्वाज्ञानाविरतियोगलक्षणानि, अभ्यवसानानि । तानि रागद्वेपमोहलक्षणस्यासवभावस्य हेतवः। आम्रवभावः, कर्महेतुः, कर्म, नोकर्महेतुः, नोकर्म, संसारहेतुः इति । ततो नित्यमेवायमात्मा. आत्मकर्मणोरेकत्वाध्यासेन मिथ्यात्वान्नानाविरतियोगमयमात्मानमध्यवस्यति । ततो रागद्वेषमोहरूपमात्रवभावं भावयति । ततः कमें, आवति । ततो नोकर्म भवति ततः संसारः प्रभवति । यदा तु, आत्मक्रमणो- मेंदविज्ञानेन शुद्धचैतन्यचमत्कारमात्रमात्मानं, उपलभते । तदा मिथ्यात्वाविरतियोगलक्षणाना, अध्यसानानां, आस्रवभावहेतुनां, भवत्यभावः । तदभावे रागद्वेषमोहरूपासवभावस्य, भवत्यभावः । तदभावेऽपि भवत्ति कर्माभावः। तद-ए भावेऽपि भवति संसाराभावः । इत्येष संवरक्रमः । ___अर्थ-तेषां कहिये पूर्व कहे जे आस्रव, राग द्वेष मोह, तिनिका हेतु सर्वज्ञ देव अध्यवसान कहे हैं। ते मिथ्यात्व अज्ञान अविरतभाव योग ये च्यारि कहे हैं। सो ज्ञानीके इनिका अभाव होते, नियमतें आस्रवका निरोध होय है। सो आस्रवभावविना कर्मका भी निरोध होय है। बहुरि कर्मका अभावकरि नोकर्मका भी निरोध होय है। बहुरि नोकर्मका निरोधकरि संसारका निरोध , होय है। ___टीका-प्रथम ही जीवके आत्मा अर कर्मका एकपणाका निश्चयरूप आशय है मूल कारण जिनिका ऐसे मिथ्यात्व अज्ञान अविरति योगस्वरूप अध्यवसान विद्यमान हैं ते राग द्वेष मोह हैं लक्षण जाका ऐसे आरवका कारण हैं । बहुरि आस्त्रवभाव है सो कर्मका कारण है । बहुरि कर्म : है सो नोकर्मका कारण है । बहुरि नोकर्म है सो संसारका कारण है । तातें आत्मा है सो नित्य ही आत्मा अर कर्मका एकपणाका निश्चयरूप आशयतें मिथ्यात्व अज्ञान अविरति योगमय । आत्माकू निश्चयकरि माने है, तिस निश्चयतें राग द्वेष मोहरूप जो आस्रवभाव ताहि भावे + है। बहुरि तातें कर्मका आस्रव होय है, बहुरि कर्म ते नोकर्म होय है, बहुरि नोकर्मत संसार प्रगट %% %% % 卐 % 牙
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy