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________________ 5 5 5 F 5 55 5 5 5 5 5 5 5 पुद्गल परिणाम हैं, तिनितें सदा ही स्वयमेव ही भिन्न है । तातें ज्ञानी निरासव ही है। आगे 5 पूछे हैं, जो, ज्ञानी निरासूव कैसा है ? ताका उत्तरकी गाथा कहे हैं । गोथा चहुविह अणेयभेयं बंधते णाणदेसणगुणेहिं । समये समये जमा तेण अबंधुत्ति णाणी दु ॥७॥ चतुर्विधा अनेक बति ज्ञानदर्शनगुणाभ्यां । समये समये यस्मात् तेनाबंध इति ज्ञानी तु ॥७॥ आत्मख्याति:-झानी हि तावदासवभावनाभिप्रायाभावान्निरालव एव । यत्तु तस्यापि द्रव्यप्रत्ययाः प्रतिसमयमनेकऊ प्रकारं पुद्गलकर्म बन्नति तत्र ज्ञानगुणपरिणामहेतुः । कथं ज्ञानगुणपरिणामो बंधहेतुरिति चेत् -- अर्थ-जाते च्यारि प्रकार आसव कहे जे-मिथ्यात्व अविरमण कषाय योग, सो ए दर्शनज्ञान॥ के गुणनिकरि समय समय अनेक भेद लिये कर्मनिकू वांधे हैं, तात ज्ञानी तो अबंधरूप ही है।। टीका-प्रथम ही ज्ञानी है सो तौ आस्व भावकी भावनाका अभिप्रायका अभावते निरा. + सूव ही है। बहुरि तिस ज्ञानीकै भी द्रव्यासव समय समयप्रति अनेक प्रकार पुद्गल कर्म बांधे हैं। तिसविर्षे ज्ञानगुणका परिणमन है सो कारण है। आगे फेरि पूछे है, ज्ञानगुणका परिणाम बंधका कारण कैसा है ? ताका उत्तरकी गाथा जमा दु जहण्णादो णाणगुणादो पुणोवि परिणमदि। अण्णत्तं णाणगुणो तेण दु सो बंधगो भणिदो ॥८॥ यस्मातु जघन्यात् ज्ञानगुणात् पुनरपि परिणमते । अन्यत्वं ज्ञानगुणः तेन तु स बंधको भणितः ॥८॥ 万 5 5 5 55 5
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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