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स्वभाव है । सो परभाव जो अज्ञान नामा कर्म, सो ही भया मल, ताकरि व्याप्तपणातें तिरोधान" प्रम कीजिये है- आच्छादिये है। जैसे परभावरूप जो मल रंग, ताकरि व्याप्त भया श्वेतवस्त्रका
स्वभावभूत श्वेतस्वभाव आच्छादित होय है तैसें । बहुरि ज्ञानके चारित्र है सो मोक्षका कारणरूप स्वभाव है। सो परभावस्वरूप जो कपापनामा कर्म सो ही भया मल, ताकरि व्याप्तपणातें तिरो-5 धान कीजिये है-आच्छादिये है। जैसे परभावरूप जो मल रंग, ताकरि व्याप्त भया श्वेतवस्त्र-...
का स्वभावभूत श्वेतस्वभाव आच्छादित कीजिये है तैसें । यातें मोक्षके कारण जे सम्यग्दर्शनज्ञान+ चारित्र तिनिका आच्छादन करनेतें कर्म• प्रतिषेध्या है।
___ भावार्थ सम्यग्दर्शनसार वारिमय ज्ञाण गरिणमनस्वरूप मोक्षमार्गके प्रतिबंधक मिथ्यावा 卐 अज्ञान कषायरूप कर्म है, सोए कर्म तिस मोक्षके कारणभावकू आच्छादित करे है । याते कर्मका निषेध है । आगे कर्मका स्वयमेव बंधपणा साधे हैं । गाथा
सो सचगाणदरसी कम्मरयेण णियेण उच्छरणो। संसारसमावण्णो णवि जाणदि सव्वदो सव्वं ॥१६॥
स सर्वज्ञानदर्शी कर्मरजसा निजेनावच्छिन्नः ।
संसारसमापन्नो न विजानाति सर्वतः सर्वं ॥१६॥ आत्मख्याति:-यतः यमेव झानतया विश्वसामान्यविशेषज्ञानशीलमपि ज्ञानमनादिस्वपुरुषापराधप्रवर्तमानकर्ममलावच्छन्नत्वादेव बंधावस्थायां सर्वतः सर्वमप्यात्मानमविजानदज्ञानभावेनैवेदमेवमवतिष्ठते । ततो नियतं स्वयमेव कर्मव) पंधः । अतः स्वयं बंधात्वात्कर्म प्रतिषिद्ध। अथ कर्मणो मोक्षहेतुतिरोधायिभावत्वं दर्शयति
॥ अर्थ-सो आत्मा स्वभावकरि सर्वका जाननहारा लेखनहारा है तौऊ अपना कर्मरूप रज-.करि आच्छादित व्याप्त भया संता संसारकू प्राप्त है ऐसा भया संता सर्वप्रकार सर्व वस्तूकून। जाने है।
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