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________________ 5 ; 55 5 55 + विचारिये तब दोऊ ही शूद्रीके पुत्र हैं, जाते दोऊ ही शूद्रीके उदरतें जन्मे हैं, सो साक्षात् शूद्र । प卐 हैं। ते जाति भेदके भ्रमकरि प्रवर्ते हैं, आचरण करे हैं । ऐसें पुण्यपाप कर्म जानने, विभावपरिण-9 तीते उपचे, दोऊ ही नहला हैं, प्रतिदकवि दोन टीने हैं, परमा दृष्टि कर्म एक ही जाने हैं। 1 आगे शुभाशुभ कर्म के स्वभावका वर्णन कहे हैं । गाथा--- कम्ममसुहं कुसीलं सुहकम्मं चावि जाण सुहसीलं। किह तं होदि सुसीलं जं संसारं पवेसेदि ॥१॥ कर्माशुभं कुशीलं शुभकर्म चापि जानीत सुधीलं । कथं तद् भवति सुशीलं यत्संसारं प्रवेशयति ॥ १॥ आत्मख्याति:-शुभाशुभजीवपरिणामनिमित्तत्वे सति कारणभेदात् शुभाशुभपुद्गलपरिणाममयन्वे सति स्वभावभेदात् शुमाशुभफलपाकत्वे सत्यनुभवभेदात् शुभाशुभमोक्षगंधमार्गाश्रितत्वे सत्याश्रयभेदात् चैकमपि कर्म किंचिच्छुभं - 卐 किंचिदशुभमिति केषांचित्किल पक्षः, स तु प्रतिषक्षः । तथाहि शुभोऽशुभो वा जीवपरिणामः केवलाज्ञानत्वादेकस्त- 4 देकत्वे सति कारण दात् एकं कर्म । शुभो शुभो वा पुद्गलपरिणामः केवलपुद्गलमयत्वादेकस्तदेकत्वे सति स्वभावा卐 भंदादेकं कर्म । शुभोऽशुभो वा फलपाकः केवलपुद्गलमयत्वादेकस्तदेकरवे सत्यनुभवाभेदादेकं कर्मः । शुभाशुभौ मोक्ष बंधमागौ तु प्रत्येकं केवलजीवषुद्गलमयत्वादनेको तदनेकत्वे सत्यपि केवलपुद्गलमयबंधमार्गाश्रितत्वेनाश्रयाभेदादेक के कर्म। ___ अर्थ-अशुभकर्म तौ कुशील है, पापस्वभाव है, बुरा है । बहुरि शुभकर्म है सो सुशील है, + पुण्यस्वभाव है, भला है । ऐसें जगत् जाने है । तहां परमार्थदृष्टि कहे हैं, जो कर्म तौ शुभ होऊ, र तथा अशुभ होऊ, प्राणीकू संसारमें प्रवेश करावे है सो सुशील कैसे होय ? नाहीं होय। " टीका केईकनिका ऐसा पक्ष है, कर्म एक है तौ शुभ अशुभके भेदतें दोय भेदरूप है । जातें ॥ २४ + शुभ अर अशुभ जे जोक्के परिणाम ते जाकू निमित्त हैं तिस पणेकरि कारणके भेदतें भेद है। 牙牙 % 55 5卐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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