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________________ फ्र 卐 आगें चारित्रका विधान कया है । तामें ज्ञानयेतनाका तौ अनुभवन अर कर्मचेतना कर्मफलवेतनाका त्याग कैसे करे ताकी रीति कही है गाथा चारिमैं। आगे जो कर्मकूं अर कर्मफलकुं जय १६ 卐 5 वेदता संता आपकूं तिलरूप करे है, सो नवीन कर्मकूं बांधे है ऐसें कया है गाथा तीनमें । इहां टीकाकार इस कर्मचेतना और कर्मफलचेतनाका विधान स्पष्ट किया है। तहां कर्मचेतनाका 5 तो अतीत वर्तमान अनागत कर्मके त्यागके कृत कारित अनुमोदनाके मन वचन कायकरि गुणचास फ गुणवास भंग करि त्यागका विधान दिखाया है। अर कर्मफलचेतनाका त्यागका एकसो अठताली कर्मप्रकृतिनिके नाम लेकर त्यागका विधान दिखाया है। आगे कर्मभावतें ज्ञानकुं 5 5 न्यारा दिखाय अर अब समस्त अन्यव्यतितें न्यारा दिखाया है गाथा पंधरामैं। आगे कहा है, 卐 जो आत्मा अमूर्तिक है, तातें याकै पुगलमयी देह नाहीं है गाथा तीनमैं। आगे कहा, द्रव्यलिंग फ है सो देहमयी है, सो आत्मा के मोक्षका कारण नाहीं है, दर्शनज्ञानवारित्र अपना भाव है, सोही मोक्षका कारण है ऐसें गाथा तीनमें वर्णन है । फ्र 卐 आगे उपदेश किया है, जो मोक्षका अर्थी दर्शनज्ञानचारित्रस्वरूप मोक्षमार्गविषे ही आत्माकूं 5 प्रो । आगे द्रव्यलिंगहीविवें जे ममय करे हैं तिनिकै मोक्ष नाहीं होय है, ऐसें कहा है। आगे का है, जो व्यवहारय तो मुनि श्रावककै लिंगकूं मोक्षमार्ग कहे है, अर निश्चय काढू फ्र 5 ही लिंगकूं मोक्षमार्ग कहै नाहीं है । आगे इस ग्रंथ पूर्ण किया है, ताका पढनेका अर्थ जाननेका 卐 फलकी गाथा एक कहि ग्रंथ पूर्ण किया है। आगे टीकाकार के वचन हैं, जो इस ग्रंथमैं आत्माकूं ज्ञानमात्र कहि अनुभव कराया, अर आत्मा अनंतधर्मा है, सो स्याद्वादतें साधे है, सो ज्ञानमात्र फ मैं स्याद्वाद विरोव आये, तार्के परिहारके अर्थि तथा एकही ज्ञानमैं उपाय भाव अर उपेयभाव 5 कैसे बने, ताके साधनेके अर्थ स्याद्वादाधिकार अर उपायोपेयाधिकार इस सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार- 5 व्याख्यान किया है। तहां एकही ज्ञानविषै " तत् अतत् । एक अनेक । सत् असत् । नित्य 卐 5 अनित्य" इनि भावनिकै १४ भंगकरि तिनिके १४ काव्य कहि अर स्याद्वादर ज्ञानमात्रभावविषै
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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