SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ + $ $ $ $ 卐ऊ+++++ धका स्वरूप कया है। आगे शिष्यका प्रश्न है, जो शुद्धमाका ग्रहण करि मोक्ष करा, सो ... 5 आत्मा प्रतिक्रमणादिकरि दोषनितें छूटे है, शुद्ध आत्माका ग्रहण करि कहां होय है ताका 1. उत्तर है, जो प्रतिक्रमणाप्रतिक्रमणते रहित तीसरी अप्रतिक्रमणादिस्वरूप अवस्था शुद्ध आत्मा हीका ग्रहण है, सो याहीत आत्मा निर्दोष होय है। ऐसें गाथा वीसमें मोक्षाधिकार संपूर्ण किया है। यामें टीकाकारकृत कलशरूप काव्य तेरा हैं। - आगें सर्वविशुद्धज्ञानरूप आत्माका अधिकार है। तहां प्रथम ही आत्माकै परद्रव्यका कर्ता । 卐 भोक्तापणाका अभाव दिखाया है । तहां पहले तो कापणाका अभाव दृष्टांतपूर्वक चारि गाथामें फ़ कहा है। पीछे कर्तापणा जीव अज्ञानतें माने हैं, सो अज्ञानकी सामर्थ्य दिखाई है गाथा दोयमैं। आर्गे अज्ञानीकू मिथ्यादृष्टि कह्या है गाथा दोयमें । आगें परद्रव्यका आत्माकै भोकापणाकाम भी स्वभाव नाहीं है ऐसे कया है, अर अज्ञानीकू भोक्ता कहा है, गाथा दोयमें। आगे ज्ञानी कर्मफलका भोक्ता नाहीं हैं ऐसे कया है गाथा दोयमै । आर्गे जे आत्माकू कर्ता । - माने हैं तिनिकै मोक्ष नाहीं है ऐसे तीन गाथामें कहा है। आगें अज्ञानी अपने भाषकर्मका " कर्ता है ऐसें युक्तिकरि साध्या है गाथा चारिमें । आगें आत्माकै कर्तापणा अर अकर्तापणा जैसें है, . म तैसें स्याद्वादकरि साध्या है गाथा तेरामें आगे बौद्धमती ऐसे माने हैं, जो कर्मकू करे और है ॥ भोगवै और है ताका निषेध युक्तिकरि चारि गाथामें कीया है । आगें क कर्मके भेद अभेद जैसें ।। 卐है तैसें नयविभागकरि साध्या है, दृष्टांतपूर्वक गाथासातमें, आगें निश्चयव्यवहारके कथनकू खडीका .. दृष्टांतकरि स्पष्ट कहा है दश गाथा मैं । आगे कहा है, जो रागद्वेषमोहकरि अपना दर्शनज्ञान चारित्रकाही घात होय है छह गाथामें । आगें कहा है, अन्यद्रव्यकै अन्यद्रव्य किछु करिसके नाहीं, गाथा एकमैं । आगें कहा है, जो स्पर्श आदि पुद्गलके गुण हैं ते आत्माकू किछु कहै नाही, -"जो हमळू ग्रहणकरि अज्ञानी जीव इनितें वृथा राग, द्वेष, मोह कर है, ऐसे दश गाथाकरि ॐ वर्णन है। $ $ $ $ $ $
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy