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विषं दोऊ नयके दोय पक्षपात हैं । एक नयके कर्ता है, दूसरे नयके कर्ता नाहीं है। एऐसे चैतन्य विर्षे दोऊ नयके दोऊ पक्षपात हैं। एक नयके भोक्ता है, दूसरे नयके भोक्ता नाहीं है । एचैतन्य- . विर्षे दोऊ नयके दोऊ पक्षपात हैं। एक नयके जीव है, दूसरे नयके जीव नाहीं है । एचैतन्यविर्षे घाट दोऊ नयके दोऊ पक्षपात हैं। एक गपके सूक्ष्म है, दूसरे पर खूक्ष्ण नहीं है। ऐसे ए चैतन्यविर्षे दोऊ नयके दोऊ पक्षपात हैं। एक नयके हेतु है, दूसरे नयके हेतु नाहीं है । ए दोऊ नयके 4 - चैतन्यविर्षे दोऊ पक्षपात हैं। एक नयके कार्य है, दूसरे नयके कार्य नाहीं है। ए दोऊ नयके
चैतन्यविर्षे दोऊ पक्षपात हैं । एक नयके भावरूप है, दूसरे नयके अभावरूप है। ए दोऊ : नयके चैतन्यविर्षे दोऊ पक्षपात हैं । एक नयके एक है दूसरे नयके अनेक है। ए दोऊ नयके
चैतन्यविर्षे दोऊ पक्षपात हैं । एक नयके सांत कहिये अंतसहित है, दूसरे नयके अंतसहित नाहीं 卐है। ए दोऊ नयके चैतन्यविर्षे दोऊ पक्षपात हैं। एक नयके नित्य है, दूसरे नयके अनित्य है। " .. ए दोऊ नयके चैतन्यविर्षे दोऊ पक्षपात हैं । एक नयके वाच्य कहिये वचनकार कहने में आवे है, "
दूसरे नयके वचनगोचर नाहीं है। ए दोऊ नयके चैतन्यविर्षे दोऊ पक्षपात हैं। एक नयके नाना
रूप है, दूसरेके नानारूप नाहीं है । ए दोऊ नयके चैतन्यविर्षे दोऊ पक्षपात हैं । एक नयके चेत्य " कहिये जानने योग्य है, दूसरेके चितवने योग्य नाहीं है। ए दोऊनयके चैतन्यवि दोऊ पक्षपात हैं।
एक नयके दृश्य कहिये देखने योग्य है, दूसरेके देखने में नाहीं आवे है। ए दोऊ नयके चैतन्य
विः दोऊ पक्षपात हैं। एक नयके वेय कहिये वेदनेयोग्य है, दूसरेके वेदनेमें न आवे है। दोऊ 卐 नयके चैतन्यविः दोऊ पक्षपात हैं । एक नयके भात कहिये वर्तमान प्रत्यक्ष है, दूसरेके नाहीं है। .. ए दोऊ नयके चैतन्यविर्षे दोऊ पक्षपात हैं । ऐसे चैतन्य सामान्यविवे ए सर्व पक्षपात हैं। बहुरि
तत्त्ववेदी है सो स्वरूपकू यथार्थ अनुभवन करनेवाला है । ताका चिन्मात्रभाव है सो चिन्मात्र - ही है, पक्षपातसूरहित है।
- भावार्थ-जीवके परनिमित्तें अनेक परिणाम हैं, तथा यामैं साधारण अनेक धर्म हैं। तथापि 5
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