SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5 5 5 15 अर्थ - जीवविष कर्म है सो बद्ध है जीवके प्रदेशनितें बंधे है, तथा स्पृष्ट कहिये स्पर्शे है, ऐसा सौ व्यवहारनयका वचन है । बहुरि जीवविषै कर्म बंधे भी नाहीं है, स्परों भी नहीं है, ऐसा क 5 शुद्ध नयका वचन है । I प्रामृत சு टीका - जीवके अर पुद्गलकर्मके एक पर्यारणा करि देखिये नौ तिस काल व्यतिरेक 5 कहिये भिन्नताका अभाव । तहां जीवविध कर्म बद्धस्पृष्ट है बंधे भी है स्पर्शे भी है, ऐसा कहिये 5 सो तौ व्यवहारका पक्ष है। बहुरि जीवकै अर पुद्गलकर्म के अनेक द्रव्यपणा है, तिसकरि देखिये तब अत्यंत भिन्नपणा है, तातैं जीवविषै कर्म वद्वस्पृष्ट नाहीं है, ऐसा कहिये सो निश्चयनयका फ्र - पक्ष है। आगें कहे हैं, जो ए दोऊ नयपक्ष हैं तिनितें कहा होय है ? गाथा சு 卐 कामं बद्धमबद्धं जीवे एवं तु जाग गयपक्खं । फ्र पक्खातिक्कंतो पुण भण्णदि जो सो समयसारो ॥७४॥ फ्रफ़ फफफफफफफफ 卐 कर्म बद्ध जीवे एवं तु जानीहि नयपक्षं । पक्षातिकांतः पुनर्भण्यते यः स समयसारः ॥७४॥ 卐 卐 आत्मख्यातिः --~~यः किल जीवे वद्ध कर्मेति यश्च जीवेऽबद्ध कर्मेति विकल्पः स द्वितयोपि हि नयपक्षः । य एवैनमतिक्रामति स एव सकल विकल्पांतिक्रांतः स्वयं निर्विकल्पैक विज्ञान वनस्वभावो भूत्वा साचात्समयसारः संभवति । 5 तत्र यस्तावज्जीवे बद्ध' कर्मेति विकल्पयति स जीवेऽबद्ध कर्मेति एकं पक्षमविक्रामपि न विकल्पमतिक्रामति । यस्तु atases कर्मेति विकल्पयति सोपि जीवे बद्ध कर्मेत्येकं पक्षमतिक्रामत्रपि न विकल्पमतिक्रामति । यः पुनर्जीवे वढ भवच कर्मेति विकल्पयति स तु तं द्वितरमपि पचमनतिक्रामत्र विकल्पमतिक्रामति । ततो य एवं समस्तनयपक्षमतिक्रामति स एव समस्तं विकल्पमतिक्रामति । य एव समस्तं विकल्पमतिक्रामति स एव समयसारं विंदति । यद्य वं 5 वहिं को हि नाम पक्षसंन्यासभावना न नाट्यति । 卐 अर्थ - जीवविषै कर्म बंधे है अथवा नाहीं बंधे है या प्रकार ए दोऊ नयपक्ष हैं । बहुरि जो पक्ष असिकांत है दूरिवर्ती है ऐसा कहिये सो समयसार है निर्विकल्प शुद्ध आत्मतत्त्व हैं । 5 卐 5 २३०
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy