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________________ फ + hh 听听听听听 $ $$ $ भया उदय आया जो पुद्गलकर्म तिसकरि सहितही होय है । ऐसा तर्क कीजिये तो, जीवकै अर . पुद्गलकर्मकै दोऊकै जैसें साथि रंगमें डारे हलद अर फिटकडी तिनि दोऊनिक रंगरूप परिणाम : होय है तैसें दोऊहीकै कर्मपरिणामकी प्राप्ति आवै, सो ऐसे है नाहीं। बहुरि जौ ऐसें मानिये जो रागादि अज्ञानपरिणानकी प्राप्ति आवै केवल एक जीवहीके होय है, तो इस हेतूतें ऐसाआया, जो पुद्गलकर्मका उदय जीवके रागादि अज्ञान परिणामनिकू निमित्त है, तिस विना न्यारा ही 15 जीवको परिणाम है। भावार्थ-पद्गलकर्मका उदयके लार ही जीवका परिणाम मानिये तौजीवकै अर कर्मकै दोऊकै रागादिककी प्राप्ति आवै, सो ऐसें नाहीं । तातें पदुलकर्मका उदय जीवके अज्ञानरूप रागादिपरि-" णामनिकू निमित्त है। तिस निमित्तते न्यारा ही जीवका परिणाम है। आगे कहे हैं-जो पुद्गल- द्रव्यका परिणाम है सो जीवतें न्यारा ही है । गाथा जइ जीवेण सहच्चिय पुग्गलदव्वस्स कम्मपरिणामो। एवं पुग्गलजीवा हु दोषि कम्मत्तमावण्णा ॥७॥ एकस्स दु परिणामो पुगलदवस्स कम्मभावेण । ता जीवभावहेदूहि विणा कम्मस्स परिणामो॥७२॥ यदि जीवेन सह चैव पुद्गलद्रव्यस्य कर्मपरिणामः । एवं पुद्गलजीवी खलु द्वावपि कर्मत्वमापन्नौ ॥७१॥ एकस्य तु परिणामः पुद्गलद्रव्यस्य कर्मभावेन । तज्जीवभावहेतुभिविना कर्मणः परिणामः ॥७२॥ आत्मख्यातिः-यदि पुद्गलद्रव्यस्य तनिमित्तभूतरागाद्यज्ञानपरिणामपरिणतजीवेन सहैव कर्मपरिणामो भवतीति । 15 वितर्कः तदा पुद्गलद्रव्यजीवयोः सहभूतहरिद्रामुधयोरिव द्वयोरपि कर्मपरिणामापत्तिः अथ चैकस्यैव पुद्गलद्रव्यस्य । + + + + + + +
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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