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________________ फफफफफफफफफफफफफफ 卐 卐 प्रा 5 भी नाही है, उदयकी बरजोरीतें परिणमे है । तातें तहां भ' ज्ञान ही विषै अपना स्वामीपणा फ्र मान तिनि क्रोधादि भावका भी अन्य ज्ञेयकी ज्यों ज्ञाता ही है, कर्ता नाहीं है । ऐसें तहां 5 भी ज्ञानीपणाकरि ज्ञानभाव ही भया जानना । आगे अगिली गाथाकी सूचना अर्थरूप फ्र 卐 卐 卐 卐 卐 卐 卐 卐 卐 तिनिविषै आत्मबुद्धि नाही है, परानमित्त भई उपाधि मान है, सो उदय देखि रहे । आगामी ऐसा बंध नाही करे है । जातें संसारका भ्रमण वर्षे अर आप उद्यमी होय तिनिरूप परिणमे 卐 श्लोक है। अज्ञानमयभावानामज्ञानी व्याप्य भूमिकां । द्रव्यकर्मनिमित्तानां भावानामेति हेतुतां ॥२३॥ अर्थ - अज्ञानी है सो अज्ञानमय अपने भाव, तिनिकी भूमिकाकूं व्याप्यकरि आगामी द्रव्य कर्मकं कारण जे अज्ञानादिक भाव, तिनिका हेतुपणाकूं प्राप्त होय है। सो ही अर्थ गाथा पांचकरि कहे हैं। गाथा मिच्छुत्तस्सदु उदयं जं जीवाणं दु अतच्चसद्दहणं । असंजमस्स दु उदओ जं जीवाणं अविरदत्तं ॥ ६४॥ अगणाणस्स दु उदओ जं जीवाणं अतच्चउवलद्धी । जो दु कलुसोवओगो जीवाणं सो कसाउदओ ॥६५॥ तं जाण जोगउदयं जो जीवाणं तु चिट्ठउच्छाहो । सोहणमसोहणं वा कायव्वो विरदिभावो वा ॥ ६६ ॥ कफ्रफ़ फफफफफफफफफ एदेस हेदुभदेसु कम्मइयवग्गणागयं जं तु I परिणमदे अडविहं णाणावरणादिभावेहिं ॥६७॥ 卐 卐 卐 फ्र 卐 卐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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