SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5 फ्र अज्ञानी भया संता अज्ञानतें अनादि संसारतें लगाय पुद्गल कर्मका अर आपका भावका मिल्या हुआ आस्वादका स्वाद लेने करि मुद्रित भई है अपना जुदा अनुभवनको शक्ति जाकी ऐसी 5 अनादि ही तें है । तातें परकू अर आपकू' एकपणाकरि जाने है । तातें मैं क्रोध हौं इत्यादिक 5 विकल्प आपके करे है । तातें निर्विकल्परूप अकृत्रिम एक जो अपना विज्ञानवन स्वभाव तातें भया संता, बारंबार अनेक विकल्पनिकरि परिणमता संता कर्ता प्रतिभासे है । बहुरि ज्ञानी 卐 卐 होय तब सम्यग्ज्ञान तिस सम्यग्ज्ञानकूं आदि लगाय करि प्रसिद्ध भया जो पुद्गलकर्म के स्वाद 5 अपना भिन्न स्वाद, far आस्वादकर उघडी है भेदके अनुभवकी शक्ति जाकी ऐसा होय है, तब ऐसा जाने है, जो अनादिनिधन निरंतर स्वाद आता समस्त अन्य रस स्वादनितें 卐 विलक्षण भिन्न अत्यन्त मधुर मीठा जो एक चैतन्यस्वरूप रस तिस स्वरूप तौ यह आत्मा है । 45 * बहुरि कषाय यातें भिन्न रस हैं, कषायले वे स्वाद हैं तिनि करि सहित जो एकपणाका विकल्प करना है सो अज्ञानतें है । ऐसें इस प्रकार परकूं अर आत्माकू न्यारे न्यारे नानापणा करि जाने 5 है । तातें अकृत्रिम नित्य एक ज्ञान ही मैं हूं बहुरि कृत्रिम अनित्य अर अनेक जे ए क्रोधादिक ते मै नाहीं हौं ऐसें जाने तब क्रोधादिक मैं हौं इत्यादिक विकल्प आपके किंचिन्मात्र भी नाहीं करे है, तातें समस्त ही कर्तापणाकू छोडे है, तातें सदा ही उदासीन वीतराग अवस्था स्वरूप * होय जानता संता ही तिष्ठे है, तातें निर्विकल्पस्वरूप अकृत्रिम नित्य एक विज्ञानघन भया संता अत्यन्त अकर्ता प्रतिभासे है। ॐ ॐ ॐ ॐ 卐 भावार्थ- जो पर द्रव्यका' अर पर द्रव्यके भावनिका अपने कर्तापणाकूं अज्ञान जाने तब आप * कर्ता काहेकूं बने ? अज्ञानी रहना होय तौ पर द्रव्यका कर्ता बने तातें ज्ञान भये पीछे पर द्रव्यका कर्तापणा न रहै। अब इस ही अर्थका कलशरूप काव्य कहे हैं । फ्र प्राभृत १६
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy