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________________ मय १ __टीका-निश्चयकरि यह विकारसहित चैतन्यपरिणाम है सो सामान्यकरि अज्ञानरूप है। सो ही मिध्यादर्शन अज्ञान अविरतिरूप तीनप्रकार है । सो यह परिणाम परके अर आत्माके अविशेष ... अभेद देखनेकार, अविशेष अभेद जाननेकरि, अविशेषरूप रतिकरि, समस्त भेदकू छिपाय अर ) भाव्यभावक भावकू प्राप्त भवे जे चेतन अचेतन दोऊ तिनिका एक आधारकरि, अनुभवन करनेते, मैं क्रोध हूं ऐसा आत्माका विकल्प उपजावै है, क्रोध हीकू आपा जाने है। तातें यह आत्मा मैं " क्रोध है ऐसी भ्रांति करि विकारसहित चैतन्यपरिणाम तिसकरि परिणमता संता तिस विकारस-पुर हित चैतन्यपरिणामरूप अपने भावका कर्ता होय है। ऐसे ही जैसे क्रोध कया, तैसें ही क्रोधकी जायगा मान, माया, लोभ, मोह, राग, द्वेष, कर्म, नोकर्म, मन, बचन, काय, श्रोत्र, चक्षु, घाण, रसन, स्पर्शन ए पद पलटिकरि सोला सूत्र व्याख्यान करना । बहुरि इसही उपदेशकरि अन्य भी विचारणे। भावार्थ-मिथ्यादर्शन, अज्ञान, अविरति ऐसे तीनप्रकार विकारसहित चेतन्यपरिणाम है, आपापरका भेद न जानिकरि ऐसैं माने है, जो में क्रोधी हूं मैं मानी हूं इत्यादि । सो ऐसा माननेतें अपना विकार सहित चैतन्यपरिणाम है, ताका यह अज्ञानी जीव कर्ता होय है। अर कर्ता भया तब ते अज्ञानभाव अपने कर्म भये । ऐसें अज्ञानहीतें कर्म होय है । आगे कहे हैं, जो ऐसे ही धर्मद्रव्य आदि अन्य व्यनिके विई आत्मविकल्प करे है । गाथा तिविहो एसुवओगो अप्पवियप्पं करेदि धम्मादि । कत्ता तस्सुवओगस्स होदि सो अत्तभावस्स ॥२७॥ त्रिविध एष उपयोग आत्मविकल्पं करोति धर्मादिकं । कर्ता तस्योपयोगस्य भवति स आत्मभावस्य ॥२७॥ आत्मख्यातिः-एप खलु सामान्येनाज्ञानरूपो मिध्यादर्शनासानाविरतिरूपस्त्रिविधः सविकारश्चैतन्यपरिणामः 野听听听听听听听听 乐 乐乐 乐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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