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________________ $ $ $ 5 $ s 卐 ही भिन्नताका ज्ञानतें परस्पर विशेषका भेद ज्ञान होते नानापणाका विवेकतें, जैसे शीत उष्ण मय रूप आत्मा आपकरि परिणमनेकू असमर्थ है, तैलें राग द्वेष सुख दुःखादिक तिनिरूपकरि नाही 卐 परिणमता संता ज्ञानके ज्ञानपणाकू प्रगट करता संता ज्ञानमय भया। ऐसें जाने है-यह卐 मैं राग द्वेषादिककू जानूंही हूं अर ए रागरूप पुद्गल है इत्यादि विधानकरि समस्त ही जे... का ज्ञानतें विरुद्ध रागादिक कर्म तिनिका कर्ता नाहीं प्रतिभासे है। भावार्थ-जब राग द्वेष सुख दुःखावस्था ज्ञानते भिन्न जाने “जो जैसें पुद्गलकी शीत - उष्ण अवस्था है तैसें राग द्वेषादिक भी हैं ऐसा भेदज्ञान होय" तब आपकू ज्ञाता जाने रागादि। रूप पुदगलकू जाने, ऐसे होते इनिका कर्ता आत्मा नाहीं होय है, ज्ञाता ही रहे है। आगें पूछे है, जो अज्ञानतें कर्म कैसे निपजे है ? ताका उत्तर कहे हैं । गाथा तिविहो एसुवओगो अप्पवियप्पं करेदि कोहोहं।। कत्ता तस्सुवओगस्स होदि सो अत्तभावस्स ॥२६॥ त्रिविध एष उपयोग आत्मविकल्पं करोति मोधोहं । कर्ता तस्योपयोगस्य भवति स आत्मभावस्य ॥२६॥ आत्मख्यातिः-एष खलु सामान्येनाज्ञानरूपो मिथ्यादर्शनासानाविरतिरूपस्त्रिविधः सविकारश्वतन्यपरिणामः ॥ परामनोरविशेषदर्शनेनाविशेषज्ञानेनाविशेषविरत्या च समस्तं भेदमपनुत्य भाव्यभावकभावापन्नयोश्चेतनाचेतनयोः सामान्याधिकारण्येनानुभवनात्क्रोधोहमित्यात्मनो विकल्पमुत्पादयति । ततोयमात्मा क्रोधोहमिति भ्रांत्या सविकारेण चैतन्यप-5 रिणामेन परिणमन् तस्य सविकारचैतन्यपरिणामरूपस्यात्मभावस्य कर्ता स्यात् । एवमेव च क्रोधपदपरिवर्तनेन मानमायालोभमोहरागदपकर्ममनोकर्मनोवचनकायश्रोत्रचक्षुर्घाणरसनस्पर्श नसूत्राणि पोडश व्याख्येयान्यनया दिशान्यान्यप्यूमानि।' अर्थ-यह उपयोग है सो तीन प्रकार स्वरूप आपके विकल्प करे है। जो मैं क्रोधस्वरूप । ऐसें । सो ऐसा अपना उपयोगभावका कर्ता होय है। $ s $ $ $ $ $ $
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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