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________________ 15॥ 5 से ही यह आत्मा अज्ञानतें मिथ्यादर्शनादि भावकरि परिणमता संता, मिथ्यादर्शनादि भावका _ कर्ता होय, तब तिस मिथ्यादर्शनादिभावकू अपने करनेके अनुकूलपणे करि निमिसमात्र होते संत, - आस्मा जो कर्ता, तिस विना ही पुद्गलद्रव्य आपही मोहनीयादि कर्मभावकरि परिणमे है। . भावार्थ-आत्मा तो अज्ञानरूप परिणमे है, काहुँसूममत्व करे है, काडंसू राग करे है, 卐 काहू सूदेष करे है, तिनि भावनिका आप कर्ता होय है । बहुरि तिसकू निमित्तमात्र होते पुद्ग लद्रव्य आप अपने भावकरि कर्मरूप होय परिणमे है। परस्पर निमित्तनैमित्तिकभाव है। कर्ता 卐 दोऊ अपने अपने भालके हैं यह निश्चय है। आगे कर्म होय है सो अज्ञानहीत होय है यह । तात्पर्य कहे हैं । गाथा परमप्पाणं कुम्वदि अप्पाणं पि य परं करंतो सो। अण्णाणमओ जीवो कम्माणं कारगो होदि ॥२४॥ परमात्मानं कुर्वन्नात्मानमपि च परं कुर्वन् सः । अज्ञानमयो जीवः कर्मणां कारको भवति ॥२४॥ आत्मख्यातिः-अयं किलाज्ञानेनात्मा परात्मनोः परस्पर विशेवानि ने सति परमात्मानं कुर्वन्नात्मानं च परं कुर्वन्स्वयमज्ञानमयीभूतः कर्मणां कर्ता प्रतिभाति । तथाहि-तथाविधानुभवसंपादनसमर्थायाः रागद्वेषसुखदुःखादिरू- जा पायाः पुद्गलपरिणामावस्थायाः शीतोष्णानुभवसंपादनसमर्थायाः शीतोष्यायाः पुद्गलपरिणामायस्थाया इव पुद्गलादभिन्न स्वेनात्मनो नित्यमेवान्यंतभिन्नायास्तन्निमित्तं तथाविधानुभवस्य चात्मनो भिन्नत्वेन पुद्गलान्नित्यमेवात्यंतभिन्नस्या- " म ज्ञानात्परस्परविशेषानि ने सत्येकत्वाध्यासात् शीतोष्णरूपेणैवात्मना परिणमितुमशक्येन रागद पसुखदुःखादिरूपेणाक्षा नात्मना परिणममानो ज्ञानस्याज्ञानत्वं प्रकटीकुर्वन्स्वयमज्ञानमयीभूत एपोहं रज्य इत्यादि विधिना रागादेः फर्मणः कर्ता र प्रतिभाति । ज्ञानातु न कर्म प्रभवतीत्याह । ..अर्थ-जीव है सो आप अज्ञानमयी भया संता परकू आप करे है, बहुरि आपकू पर करे है, ऐसें कर्मनिका कर्ता होय है। in 卐卐फज卐ऊ卐++
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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