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सानादिकभावकू व्यवहारनय जीव कहे हैं ऐसें कहा है। आगें परमार्थरूप जीवका स्वरूप कहा है। आगें वर्णको आदि लेकरि गुणस्थाहात जो जाप हैं रो जीयक नाहीं हैं ऐसें छह गाथामें ,
कया है। आगें ए वर्ण आदिक भाव जीवके व्यवहारनय कहे है निश्चयनय न कहै है ऐसे दृष्टांत । 卐 सहित कया है। आगें वर्णादिभावनिके जीवके तादात्म्य कोई अज्ञानी माने तो ताका निषेध ।
किया है। ऐसे अडसठि गाथामें जीवाजीव अधिकार पूर्ण किया । यामैं टीकाकारकृत कलशरूप काव्य पैंतालीस हैं। ____ आगे कर्तृकर्म' नामा दूसरा अधिकारका प्रारंभ है । ताकी गाथा छिहत्तरी हैं । तहां प्रथमही, गाथा दोयमें यह कहा है जो यह अज्ञानी जीव क्रोधादिकविर्षे वर्ते हैं तेते कर्मका बंध करे हैं। आगें कह्या है आस्रवका अर आत्माका भेदज्ञान भये बंध न होय है। आगें आस्रवनितें निवृत्तहोनेका , विधान कह्या है । आगें आस्रवनितें निवृत भया आत्माका चिह्न कया है। आगे आस्रवका अर 卐 आत्माका भेदज्ञान भये आत्मा ज्ञानी होय, तब, कर्तृकर्मभाव भी याकै न होय ऐसें कहा है । आगें !
कहा है, जो जीवपुद्गलकर्मके परस्पर निभित्तनैमित्तिकभाव है, तो कर्तृकर्मभाव न कहिये। अाँगें. + कया है, यह निश्चयनय है जो जैसे आत्माकै अर कर्मके कतृकर्मभाव नाहीं है, तैसें भोक्तृभोग्य
भाव भी नाहीं है। आपका आपहीके क कर्मभाव भोक्तृभोग्यभाव है। आगें व्यवहारनय है सो.. " आत्माकै अर पुद्गलकर्मके कतकर्मभाव अर भोक्तभोग्यभाव कहै है ऐसा कहा है।
आगें आत्मा पुद्गलकर्मका कर्ता मानिये, तौ, तामें बडा दोष आवे है। दोय कियाका कर्ता। " आत्मा ठहरे, तो यह जिनमत नही । ऐसें माननेवाला मिथ्यादृष्टि है ऐसे कया है। आगें मिथ्या-- ॐ त्वादि आस्रवनिक जीव अजीव भेदकरि दोय प्रकार कहे हैं अर दोय प्रकार कहनेका हेतु कया है।"
आगें आत्माकै मिथ्याव अज्ञान अविरति ए तीन परिणाम अनादि हैं, तिनिका कपणा दिखाया फ़ है, अर तिस निमित्ततें पुद्गल कर्मरूप होय है ऐसे कया है। आगें आत्मा मिथ्यात्वादिभावरूप न" .. परिणमै तब कर्मका कर्ता नाहीं है ऐसे कया है । आगें शिष्यका प्रश्न है, जो अज्ञान्तें कर्म कैसें ..