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________________ 乐乐 $ $ $ $ 乐乐 乐乐 乐乐 $ $ माननेवालाकू मिथ्यादृष्टि कहा है । जड चेतनकी एक क्रिया होय तो सर्वव्य पलटते सर्वका । फ़ लोप होय है, यह बडा दोष उपजे । अब इसही अर्थ के समर्थन कलारूप काव्य कहे हैं। ' ___ आर्याछन्दः 5 यः परिणमति स का यः परिगामो भोत्तु तत्कर्म । या परिगतिः क्रिया सा त्रयमपि भिन्नं न वस्तुतया ॥६॥ ॥ ____ अर्थ-जो परिणमे है सो करी है, वहुरि जो परिणया ताका परिणाम है सो कर्म है, बहुरि जो परिणति है सो क्रिया है ए तीनू ही वस्तुपगाकर भिन्न नाहीं हैं। - भावार्थ ---- अन्यहतिकारि परिणाम र परिणाका अभेद है अर पर्यायष्टिकरि भेद है।।। " तहां भेददृष्टिकरि तौ कर्ता, कर्म, क्रिया तीन कहिये हैं । अर इहां अभेदष्टिकरि परमार्थ कहा " है, जो कर्ता, कर्म, किया तीनू ही एक द्रव्यको अवस्था है प्रदेशभेदरूप न्यारे वस्तु नाहीं है।' फेरि कहे हैं। 卐 एकः परिणमति सदा परिणामो जायते सदैकस्य । एकस्य परिगविः स्यादनेकमप्येकमेव यतः ।।७|| अर्थ-वस्तु एक ही सदा परिगमे है, बहुरि एकहोकै सदा परिणाम उपजे है, अवस्थासू अन्य अवस्था होय है । बहुरि एकहीके परिणति क्रिया होय है । जाते अनेकरूप भया तौऊ एक, ही वस्तु है भेद नाहीं है। भावार्थ-एक वस्तके अनेकार्याय होय हैं, तिनि परिणाम भी कहिये अवस्था भी कहिये। । ते संज्ञा, संख्या, लक्षण, प्रयोजनादिक करि न्यारे न्यारे प्रतिभासरूप हैं तौऊ एक वस्तु ही है, + " न्यारे नाहीं है, ऐसा ही भेदाभेद स्वरूप वस्तूका स्वभाव है। फेरि कहे हैं। 卐 नोमो परिणमाः खलु परिणामो नोभयोः प्रजायेत । उभयोन परिणतिः स्याद्यदनेकमनेकमेव सदा ॥८॥ अर्थ-दोय द्रव्य हैं सो एक होय परिगमे नाहीं है बहुरि दोय व्यका एक परिणाम नाहीं ।। होय है बहुरि दोय द्रव्यको परिणतिक्रिया एक नाही होय है । जाते जो अनेक द्रव्य है सो" अनेक ही है, पलटिकरि एक नाही होय है। 卐म
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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