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________________ प ।+ + मध्य अंतविर्षे व्याप्यकरि तिसहीकू ग्रहण करे है, तिसहीरूप परिणमे है, तैसें ही उपजे है । याप्रकार तिसही अपना परिणामरूप कर्मकू करता संता है। तिसकूआप जानता संताभी बाघ तिष्ख्या - जो परद्रव्यका परिणाम ताकू "जैसें मृत्तिका कलशकू व्याप्यकरि करे है तेर्स" आप तिस पर-5 द्रव्यके परिणामविय आदि मध्य अंतविर्षे व्याप्यकरि न तो ताहि ग्रहण करे है, न तिसरूप परिणमे. है, न तैसे उपजे है। तातें प्राप्य, विकार्य, निवर्त्य तीन प्रकार व्याप्यलक्षण परद्रव्यका परिणाम-卐 रूप कर्म, ताहि न करता जो यह ज्ञानी, सो अपने परिणामकू जानता संता प्रवर्ते है। ताकै .. पुद्गलकरि सहित क कर्मभाव नाहीं है। ___ भावार्थ-पहली गाथामैं कह्या सो हो जानना। विशेष इतना--जो इहां अपना परिणामकू जानता संता जानी कहा है। बालों पूरे है, जो "इगलकर्म के फलकू जानता संता जीवकै पुद्गलकरि सहित कर्तृकर्मभाव है कि नाही?" ऐसें पूछे उत्तर कहे हैं। गाथा णवि परिणमदि ण गिणदि उप्पज्जदि ण परदव्वपज्जाए। णाणी जाणतो वि हु पुग्गलकम्मफलमणंतं ॥१०॥ नापि परिणमति न गृह्णात्युत्पद्यते न परद्रव्यपर्याये । ज्ञानी जानन्नपि खलु पुद्गलकर्मफलमनंत ॥१०॥ आत्मख्यातिः-यतो यं प्राप्यं चिकार्य नित्यं च व्याप्यलक्षणं सुखदुःखादिरूपं पुद्गलकर्मफलं कर्म पुलद्रव्येण स्वस्मंतापकेन भूत्वादिमध्यांतेषु व्याप्य तत्गृढ़ता तथा परिणमता तथोत्यधमानेन च क्रियमाणं जानन्नपि हि ज्ञानी ॥ " स्वयमंतापको भूत्वा बहिःस्थस्य परद्रव्यस्य परिणाम मृत्तिकाकलशमिवादिमध्यांतेषु व्याप्य न तं गृहाति न तथा परिणमति न तथोत्पद्यते च । ततः प्राप्य विकार्य निर्वयं च व्याप्यलक्षणं परद्रव्यपरिणामं कर्माकुर्वाणस्य सुखदुःखादिरूपं ॥१ पुद्गलकर्मफलं जानतोपि ज्ञानिनः पुद्गलेन सह न कई कर्मभावः । जीपरिणाम स्वपरिणाम सपरिणामफलं चाजानता पुद्गलद्रव्यस्य सह जोवेन क कर्मभावः किं भवति किं न भवतीति चेत् + + ++ + ++
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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