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________________ $ $ $ $ $ $ 乐乐 乐乐 $ 5 $ 乐乐 乐乐 乐乐 乐。 $ म अर्थ-ज्ञानी है सो अनेक प्रकार पुद्गल द्रव्यके पर्यायरूप ताके कर्म हैं तिनि जानता संता है तौऊ निश्चयकरि परद्रव्यके पर्यायनिविर्षे तिनिस्वरूप परिणमे नाहीं है, बहुरि तिनीकू ग्रहण नाहीं करे है, बहुरि तिनिविर्षे नाहीं उपजे है।। ____टीका-जाते यह ज्ञानी है सो पुद्गलका परिणामस्वरूप जो कर्म ताकू जानता संता भी है। कैसा है पुद्गलकर्म ? सामान्यपणे कर्मका स्वरूप तीन प्रकार है। प्राप्य विकार्य निर्वयं । तहां प्राप्य कहिये जाकू सिद्ध भयेकू प्रहण करिये सो वहुरि विकार्य कहिये वस्तूकी अवस्था पलटना विकाररूप होना सो। बहुरि निर्वर्त्य कहिये जो अवस्था पहलै न थी सो उपजे सो। ऐसा कर्मका स्वरूप है सो पुद्गलका परिणाम तीनही स्वरूपकरि पुद्गलद्रव्यके व्यापने योग्य है। सो पुद्गल द्रव्य आप अंदास होग पानि प्रा अन" ती भावनिविर्षे व्याप्यकरि ताकू ग्रहण करता फ़ है, बहुरि.तिसरूप परिणमता है, तिसस्वरूपकार उपजे है। ऐसे सो परिणाम पुद्गलद्रव्य ही करि क्रियमाण है ऐसेंकू ज्ञानी जानता है। तौऊ आप तिसविर्षे अंतर्व्यापक होयकार, बाह्य तिष्ठया जो परद्रव्य ताका परिणाम आदि मध्य अंतविर्षे व्याप्यकरि तिसरूप परिणमे नाहीं है। तिसकू' आप ग्रहण नाहीं करे हैं । तिसविवें उपजे नाहीं है। जैसे मृत्तिका घटरूप होय है, साकू ग्रहण करें है, ताकू उपजावे है, तैसें नाहीं है। ताते यह सिद्ध भया जोप्राप्यविकार्य निर्वय॑स्वरूप व्याप्यल- 5 क्षण परद्रव्यका परिणामस्वरूप कर्म, ताहि नाही करता संता, अर ताकू जानता संता जो ज्ञानी, - ताके पुद्गलकरि सहित कर्तृ कर्मभाव नाही है। भावार्थ---पुद्गलकर्म... जीव जानता संता है, तोऊ ताके पुद्गलकरि सहित कर्तृ'कर्मभाव नाहीं है । जातें कर्म तीन प्रकारकरि कहिये है। के तो तिस परिणामरूप आप परिणमै, सो परिणाम । के आप काह• ग्रहण करे सो वस्तु । के काहूकू आप उपजावै सो वस्तु । सो ऐसें ॥१६॥ तीनही प्रकारकरि जीव है सो आपते न्यारा जो पुद्गलद्रव्य, तिसरूप परमार्थत परिणमे नाहीं । जाते आप चेतन है, पुद्गल जड है, चेतन जडरूप परिणमे नाहीं। बहुरि पुद्गलकू ग्रहण 7 $ $ $
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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