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________________ नाहीं । तातें ज्ञानीकै बंध नाहीं, विकार बंधरूप है, सो बंधकी पद्धति है, ज्ञानकी पद्धति में 5 समर्थ नाहीं है । या अर्थका समर्थनरूप कथन अगिली गाथामै होसी । इहां कलशरूप काव्य है । मालिनीछन्दः =१ फ्र फ्रफ़ फ्रफ़ फ्र 卐 卐 5 5 परपरणतिमुज्झत् खंडयद्भ देवादानिदमुदिनमखंडं ज्ञानमुचंडमुच्चैः । ननु कथमवकाशः कर्तृकर्मप्रवृत्तेरिह भवति कथं वा पौद्गलः कर्मबंधः ॥ ha विधिनामा वेभ्यो निवर्त्तत इति चेत् । 卐 अर्थ -- यह ज्ञान है सो प्रत्यक्ष उदयकूं प्राप्त भया । कैसा भया ! अखंड कहिये जायें ज्ञेयके 5 निमित्ततें तथा क्षयोपशम के विशेषतें अनेक खंडरूप आकार प्रतिभासमें आवे थे तिनितें रहित 5 ज्ञानमात्र आकार अनुभवमैं आया, याहीतें ऐसा विशेषण है। कैसा है ज्ञान ? “भेदवादान् खण्ड卐 यत् " कहिये मति ज्ञानादि अनेक भेद कहावै थे, सो तिनिकं दृरि करता संता उदय भया, याहीतें "अखंड " विशेषण है । बहुरि कैसा ? परके निमित्त रागादिरूप परिणम था तिस परिकूं छोडता संता उदय भया । बहुरि कैसा है ? " उच्चैः उच्चड" कहिये अतिशयकरि प्रचंड 5 है, परका निमित्ततें रागादिरूप नाहीं परिणमे है, बलवान् हैं। तहां आचार्य कहे हैं जो अहो, ऐसा ज्ञानमें परद्रव्यकै कर्ताकर्मकी प्रवृत्तिका अवकाश कैसा होय ? तथा पौगलिक कर्मबंध कैसा 5 होय ? नाहीं होय । 卐 卐 भावार्थ - कर्मबंध तौ अज्ञानतें भई कर्ताकर्मकी प्रवृत्तितें था । अब भेदभावकूं दूरि करि अर परपरिणतिकूं दूरि करि एकाकार ज्ञान प्रगट भया । तब भेदरूप कारककी प्रवृत्ति मिटी, तब काकूं बंध होय ? आगे पूछे हैं, कौन विधानकरि आस्रवनितें निवर्तन होय है ? ताका उत्तररूप गाथा कहे हैं। गाथा- फ फ्रफ़ फ्रफ़ फफफफफ्र अहमिको खलु सुद्धो य णिम्ममो णाणदंसणसमग्गो । त िठिदो तच्चित् सव्वे एदे खयं णेमि ॥५॥ 卐 5 卐 卐 卐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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