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नाहीं है, केई स्पर्द्धक भी नाहीं है, अध्यात्मस्थान भी नाहीं है, बहुरि अनुभागस्थान भी नाहीं है, ५ बहुरि केई योगस्थान हैं ते भी जीवके नाहीं हैं, अथवा बंधस्थान भी नाहीं है, बहुरि उदयस्थान ,
भी नाही है, बहुरि केई मार्गणास्थान हैं ने भी नहीं हैं, दुरि जीवक स्थितिबंधस्थान हैं ते १३४ भी नाही है, अथवा संक्लेशस्थान भी नाहीं है, विशुद्धिस्थान भी नाही है, अथवा संयमस्थान ५
भी नाही है, बहुरि जीवके जीवस्थान भी नाहीं है, अथवा गुणस्थान भी नाही है। जा कारणकरि ए सर्वही पुद्गलद्रव्यके परिणाम हैं।
टीका-जो कृष्ण, हरित, पीत, रक्त, श्वेत, वर्ण हैं सो सर्व ही जीवकै नाहीं हैं। जाते .. पुदलद्रव्यका परिणाममयपणाकू होते अपनी अनुभूसित ए वर्ण भिन्न हैं ॥१॥ बहुरि जो सुरभि । दुरभि गंध है सो सर्वही जीवकै नाहीं है । जातें ए पुद्गलपरिणाममय हैं, ऐसे होते अपनी अनु- - भूतिते भिन्न हैं ॥२॥ वहुरि जो कटु, कषाय, तिक्त, आम्ल, मधुर रस हैं सो सर्वही जीवकै नाहीं हैं। जाते ए पुद्गलपरिणाममय हैं, ऐसें होतें अपनी अनुभूतिते भिन्न है ॥३॥ बहुरि जो स्निग्ध, म
रूक्ष, शीत, उष्ण, गुरु, लघु, मृदु, कठिन, स्पर्श हैं ते सर्वही जीवकै नाहीं हैं । जाते ए पुद्गल卐 परिणाममय हैं, ऐसे होते अपने अनुभतित भिन्न हैं ॥४॥ वहरि जो स्पर्शादि सामान्यपरिणाम'
मात्ररूप है सो जीवकै नाहीं है । जाते यह पुद्गलपरिणाममय है, ऐसे होते अपनी अनुभूतिते .. भिन्न है ॥५॥ बहुरि जो औदारिक बैंक्रियिक, आहारक, तैजस, कार्मण, शरीर है सो सर्वही जीवकै नाहीं है । जाते ए पुद्गलपरिणाममय हैं, ऐसे होतें अपनी अनुभूतिते भिन्न हैं ॥६॥ बहुरि जो समचतुरस्त्र, न्यग्रोधपरिमंडल, सातिक, कुञ्जक, बामन, हुंडक, संस्थान हैं सो सर्वही " जीवके नाहीं है । जाते ए पुद्गलपरिणाममय हैं, ऐसे होतें अपनी अनुभूतिते भिन्न हैं ॥७॥
बहुरि जो वर्षभनाराच, वजनाराच, नाराच, अर्धनाराच, कीलक, असंप्राप्तासपाटिका, संहनन, " 卐 हैं ते सर्वही जीवकै नाहीं हैं। जातें ए पुद्गलपरिणाममय हैं ऐसे होते अपनी अनुभूतिते ॥
भिन्न हैं ॥८॥
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