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___ बहुरि अनिर्दिष्टसंस्थानकू कहे हैं । द्रव्यांतर कहिये पुद्गलद्रव्य, ताकरि रचा जो शरीर,ताके की संस्थान जो आकार तिनिकरि कहा न जाथ है, याका ऐसा आकार है ॥१॥ बहुरि आपका नियतस्वभाव है ताकरि अनियतसंस्थानरूप जे अनंत शरीर तिनिमें वर्ते है, यातें भी आकार " कहा जाता नाहीं ॥२॥ बहुरि संस्थान नामकर्मका विपाक है सोभी पुद्गलद्रव्यहो विर्षे कहिये ॥ है, ताके निमित्ततें आकार न कहिये ॥३॥ बहुरि न्यारे न्यारे आकाररूप परिणमते जे समस्तवस्तु, तिनिके स्वरूपते तदाकार भया जो अपना स्वभावरूप संवेदन, तिस शातरूपपणा याकै होते भीम आप तौ समस्त लोकके मिलापकरि शून्य होती जो अपनी निर्मल ज्ञानमात्र अनुभूति तिसपणाकरि किछु भी आकाररूप नाहीं है, तातें अनिर्दिष्टसंस्थान है ॥४॥ येसै चारि हेतु संस्थानका कहना निषेध्या । ___बहुरि अव्यक्तविशेषणकू साधे हैं । तहां पद्मव्यस्वरूप लोक है सो ज्ञेय है, व्यक्त है, ऐसें । व्यक्तरूपते जीव अन्य है, तातें अव्यक्त है ॥१॥ बहुरि कषायका समूह जो भावकभाव सो व्यक्त) है, तातें भी जीव अन्य है, तातें अव्यक्त है ॥२॥ बहुरि चित्सामान्यविर्षे चैतन्यकी व्यक्ति है। ते सर्व अंतर्भूत है, तातें अव्यक्त है ॥३॥ बहुरि क्षणिकव्यक्तिमात्रही नाहीं है, तातें भी अव्यक्त कहिये ॥४॥ बहुरि व्यक्त अर' अव्यक्त अर दोऊ भाव मिले हुये मिश्ररूप याके प्रतिभासमें आवे ।। है, तौऊ व्यक्तभावही केवल नाहीं स्पर्श है, तातें भी अव्यक्त कहिये ॥५॥ बहुरि आपही बाह्य आभ्यन्तर प्रगट अनुभूयमान है तोऊ व्यक्तभावतें उदासीन दूर वति प्रयोतमान है, तातें भी न अव्यक्त कहिये ॥६॥ ऐसे छह हेतुकरि अव्यक्तभाव साध्या ।
बहुरि ऐसे रस, रूप, गंध, स्पर्श, शब्द, संस्थान व्यक्तम्गाका अभावस्वरूप होते भी स्वसंवे-' वेदन केवलकरि आप प्रत्यक्षगोचर होतें अनुमानगोचरमात्रपणाका अभावते अलिंगग्रहण कहिये। बहुरि आपके अनुभवनमें आवे ऐसा चेतनागुणकरि सदा अंतरंगविर्षे प्रकाशमान है, तातें चेतना-5 गुण है । कैसा है चेतनागुण ? समस्त जे विप्रतियत्ति कहिये जीवकू अन्य प्रकार मानना ताका ..
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