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________________ + + प्राभरा + + is 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 + + जीव है । जातें शुभाशुभभावतें अन्य न्यारा ही किछु जीव देखनेमैं आया नाहीं, ऐसे माने हैं।५। बहुरि केई कहे हैं, जो साता अलाताका रूपकरि व्यात जो समस्त तोत्रमंदरगागुग, ताकरि भेद+ रूप भया जो कर्मका अनुभव, सोही जीव है। जातें सुखदुःखते अन्य न्यारा ही किछू जीव देख- - नेमैं आया नाहीं ।६। बहुरि केई कहे हैं, जो सिखरिगोको ज्यों दोयरून मियाजोआत्मा अर कर्म, ते दोऊ मिले ही जीव है । जातें समस्तपणाकरि कर्यते न्यारा किछू जोव देखने में आया नाही, + + ऐसें माने हैं ॥७॥ बहुरि केई कहे हैं, जो कर्मका संयोगरूप अर्थक्रियाविबें समर्थ होय है सोही जीव है । जातें कर्म के संयोगते अन्य न्यारा किछू जीव देखनेमें आया नाहीं, जैसें आठ काठ 5 卐 मिली खाट भया तब अर्थ क्रियाविर्षे समर्थ भया ऐसें माने हैं ॥८॥ ऐसें आठप्रकार तौ ए कहैं। 1. बहुरि और भी अनेकप्रकार ऐसे ही पर आत्मा कहे हैं, ते दुधुद्धि हैं। तिनि परमार्थ के जाननेवाले हैं ते सत्यार्थवादी नाहीं कहे हैं। # भावार्थ-जीव अजीव दोऊ अनादितें एकक्षेत्रावगाहसंयोगरूप मिलि रहे हैं अर अनादिहीतें - । जीवके पुद्गल के सँयोगते अनेकविकारसहित अवस्था होय है। अर परमार्थदृष्टिकरि देखिये तब जीव तो अपना चेतन्यपणा आदि भावकू नाहीं छोडे है। अर पुद्गल अपना मूर्तिक जडपणा ; आदिकू नाहीं छोडे है। परंतु जे परमार्थ नाहीं जाने हैं, ते संयोगते भये भावनिहीकू जीव कहे . हैं। जातें परमार्थजीवका रूप पुद्गलते भिन्न सर्वज्ञकू वीच तया सर्वज्ञकी परंपराके आगमतें 卐 जान्या जाय, सो जिनिक मतमैं सर्वज्ञ नाही, ते अपनी बुद्धित अनेककल्पना करि कहे हैं। ते 5 1- वेदांती, मीमांसक, सांख्य, बौद्ध, नैयायिक, वैशेषिक, चार्वाक आदि मतनिके आशय ले, आठ तौ . प्रगट कहैं। और अपनी अपनी बुद्धितें अनेक कल्पना करि कहे हैं, सो कहांताई कहै। ऐसें । 卐 कहनेवाले सत्यार्थवादी नाहीं है, सो काहेते ? सो ही कहे हैं। गाथा + +
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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