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________________ ताकी सूचनारूप यह काव्य है ऐसा माशय सूने है ! सो इहांतांइ तो रंगभूमिका वर्णन भया । दोहा-नृत्य कुतूहलतत्त्वको मरियविदेखो धाय । निजानंदरसमें छको आन सवे छिटकाय ॥१॥ इति जीवाजीचाधिकारे पूर्वरङ्गः । 乐 乐乐 乐 听听听听听听 乐乐 乐乐 乐乐 乐 आगें जीवद्रव्य अर अजीवद्रव्य ए दोऊ एक होय करी रंगभूमीमें प्रवेश करे हैं। तहां卐 आदिविर्षे मंगलका आशय लेकरि आचार्य ज्ञानकी महिमा करे हैं। जो सर्ववस्तुका जाननहारा .. यह ज्ञान है सो जीव अजीवके सर्वस्वांगनिको नीके पहिचाने है, ऐसा सम्यग्ज्ञान प्रगट होय है, 卐 इस अर्थरूप काव्य कहे हैं। शार्दूलविक्रीडितच्छंदः जीवाजीवविवेकपुस्कलदृशा प्रत्याययत्पार्षदानासंसारनिवबंधन विधिध्वंसाद्विशुद्ध स्फुटत् ।। म आत्माराममनंतधामसहसाध्यक्षेण नित्योदितं धीरोदात्तमनाकुलं विलसति ज्ञानं मनो ल्हादयत् ॥१॥ अर्थ-ज्ञान है सो मनकू आनंदरूप करता संता प्रगट होय है। कैसा है ? 'पार्षदे' कहिये जीवाजीवके स्वांग देखनेवाले महंत पुरुष तिनिकुं, जीव अजीवका भेद देखनेवाली जो बडी उज्वल निर्दोष दृष्टि, ताकरि भिन्नद्रव्यकी प्रतीति उपजावता संता है। बहुरि अनादिसंसारते ॥ - हर बंध्या है बंधन जाका ऐसा जो ज्ञानावरण आदि कर्म, ताके नाशतें विशुद्ध भया है, स्फुट .. भया है। जैसे फूलकी कली फूल तैसें विकासरूप है । बहुरि कैसा है ? आत्मा ही है आराम । 卐 कहिये रमनेका क्रीडावन जाकै, अनंतज्ञयनिके आकार जानि झलके है, तौऊ आप अपने स्वरूप __ हीमें रमे है । बहुरि अनंत है धाम कहिये प्रकाश जाका । बहुरि प्रत्यक्ष तेजकरि नित्य " + उदयरूप है। बहुरि कैसा है ? धीर है, उदात्त कहिये उत्कट है, याहीत अनाकुल है सर्ववांछातें ॥
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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