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________________ 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐 卐 रहित अपना स्वरूपका अनुभवन तो तत्काल होय गया, जातें यह प्रसिद्ध है-जो वस्तूकू परकी जाने पीछे ममत्व रहै नाहीं। आगें या अनुभूतिः परभावका भेदज्ञान कौन प्रकार भया? ऐसी आशंका करि, प्रथम तो भावक जो मोहक का उदयरूप भाव ताका भेदज्ञानका प्रकार कहे हैं । गाथा णत्थि मन को विमोहो बुज्झदि उवओग एव अहमिको । तं मोह णिम्ममत्तं समयस्स वियाणया विति ॥३६॥ नास्ति मम कोपि मोहो कुच्यते उपयोग एवाहलेकः । तं मोहनिर्ममतं समयस्य विज्ञायकाः विदति ॥३६॥ आत्मख्याति:-इह खलु फलदानसमर्थतया प्रादुर्भूय भावकेन सता पुद्गलद्रव्येणाभिनियमानष्टंकोत्कीर्णकज्ञायकस्वभावभावस्य परमार्थतः परभादेन भावयितुमशक्यत्वात्कतमोपि न नाम मम मोहोस्ति किंचतत्स्वयमेव च विश्वप्रकाशचंचुरविकस्वरानवरतप्रतापसंपदा चिच्छक्तिमागेण स्वभावभावेन भगवानात्मैवाक्थुध्यते । यत्किलाई खल्वेकः ततः समस्तद्रव्याणां परस्परसाधारणावगाहस्य निवारयितुमशक्यत्वान्मज्जितावस्थायामपि दधिखंडावस्थायामिव परिस्फुट स्वदमानस्वादभेदतया मोहं प्रति निर्ममत्वोस्मि । सर्वदेवात्मकत्वगतत्वेन समयस्यैवमेव स्थिततत्वात् इतीत्यं भावकभाव' विवेको भूतः । अर्थ-जो ऐसा जानना होय, जो यह मोह है सो मेरा कछू भी सम्बन्धी नाहीं है, मैं ऐसा 卐 जान ई, जो एक उपयोग है सोही मैं हूं, ऐसे जाननेकू मोहतें निर्ममत्वपणा सिद्धांतके तथा अपने म परफे स्वरूपरूप समयके जाननेवाले जाने हैं कहे हैं। टीका-नाम ऐसा सत्यार्थ मैं अव्यय है। तहां कहे हैं, मैं सत्यार्थपणे ऐसा जानूं हूं, जो यह है मोह है, सो मेरा कळू भी लागता नाहीं। कैसा है यह ? इस मेरे अनुभवनमैं फल देनेकी सामर्थ्यकरि प्रगट होय, भावकरूप होता जो पुद्गलद्रव्य, ताकरि रच्या हुवा है, सो मेरा नाहीं s $ $ 乐乐 乐乐 乐乐 乐 $ $$ $
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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