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________________ फफफफफफफफफफफफ 5 ६६ 5 5 करि सूता, आप ऐसें न जान्या “जो यह पैलेका है,” पीछे पैलेनें तिस वस्त्रका पल्ला पकडि किरि उाडि नागा किया, अर कही, “जो शीघ्र जागी, सावधान होऊ, मेरा वस्त्र बदले 5 समय आया है सो मेरा मोकूं देऊ,” ऐसा वारंवार वचन कया सो सुणता संता, तिस वस्त्र चिह्न समस्त देखि परीक्षा करि ऐसा जान्या, 'जो यह वस्त्र तौ पैलेका ही हैं ऐसा जानिकरि ज्ञानी भया फ संता तिस परके कूं शीघ्र ही त्यागे है। ते ज्ञानी भी जमकर परद्रव्यके भावनिकं ग्रहण करि अपने जानि, आत्माविषै एकरूपकरि सुता है, बेखवरी हुवा थका आपहीतें अज्ञानी होय रह्या है। जब गुरु या सावधान करें, परभावका भेदज्ञान कराय, एक आत्मभावरूप करै, कहै, जो "तं शीघ्र आगी, सावधान होऊ, यह तेरा आत्मा है तौ एक ज्ञानमात्र है, अन्य सर्व परद्रव्यके भाव हैं" तब वारंवार यह आगनके वाक्य सुणता संता समस्त अपने परके चिह्निकरि भलैप्रकार फ परीक्षा करि, ऐसा निश्चय करै, जो मैं एक ज्ञानमात्र हूं, अन्य सर्वं परभाव हैं, ऐसें ज्ञानी होयकरि सर्व परभावनि तत्काल छोडे है 1 5 5 1 भावार्थ - जेतें परवस्तू भूलिकर अपनी जाने, तेतैं ही ममत्व रहै अर परकूं परकी जाने यथार्थज्ञान होय, तब पैलेकी वस्तु काका ममत्व रहे ? अर्थात् न रहै यह प्रसिद्ध है। अब इस ही अर्थका कलशरूप काव्य कहे I मालिनी छन्दः 卐 卐 अवतरति न यावद्वृचिमत्यंतवेगाद्नवमपरभावत्यागदृष्टांतदृष्टिः । फ्र 卐 झटिति सकलभावैरन्यदीयैर्विमुक्ता स्वयमियमनुभूतिस्तावदाविर्बभूव ॥ २६ ॥ 卐 अर्थ - यह परभाव त्यागके दृष्टांतकी दृष्टि है सो "पुरानी न पडे ऐसें जैसें होय तेसे" 5 अत्यंत वेगतें जेतें प्रवृत्तिकं नाहीं प्राप्त होय है तापहले ही तत्काल सकल अन्यभावनिकरि रहित 5 आपही यह अनुभूति तौ प्रगट होती भई । भावार्थ-यह परभावका त्यागका दृष्टांत कला, तापरि दृष्टि पडे ते पहले समस्त अन्यभावतितें 5 5 फ्र
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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